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नवमा अथिकार-२६७
बहुरि जो कर्मका उपशमादिक है, सो पुद्गल की शक्ति है, : आमा कार्य हा नाहीं। बहुरि पुरुषार्थत उद्यम करिए है, सो यहु आत्माका कार्य है। तातें आत्माको पुरुषार्थकरि उद्यम करनेका उपदेश दीजिए है। तहाँ यहु आत्मा जिस कारणनै कार्यसिद्धि अवश्य होय, तिस कारणरूप उद्यम करे, तहाँ तो अन्य कारण मिलै ही मिलै अर कार्यकी भी सिद्धि होय ही होय । बहुरि जिस कारण कार्य की सिद्धि होय अथवा नाहीं भी होय, तिस कारणरूप उद्यम करे, तहाँ अन्य कारणं मिले तो कार्यसिद्धि होय, न मिलै तो सिद्धि न होय । सो जिनमतविषै जो मोक्षका उपाय कह्या है, सो इसते मोक्ष होय ही होय। तातें जो जीव पुरुषार्थकरि जिनेश्वरका उपदेश अनुसार मोक्ष का उपाय करै है, ताकै काललब्धि वा होनहार भी भया अर कर्मका उपशमादि भया है तो यह ऐसा उपाय करे है। तातें जो पुरुषार्धकरि मोक्षका उपाय करै है, ताकै सर्वकारण मिले हैं, ऐसा निश्चय करना अर वाकै अयश्य मोक्षकी प्राप्ति हो है बहुरि जो जीव पुरुषार्थकरि मोक्षका उपाय न करे, साकै काललब्धि वा होनहार भी नाहीं अर कर्मका उपशमादि न भया है तो यह उपाय न करै है। तातै जो पुरुषार्थकरि मोक्षका उपाय न करै है, ताकै कोई कारण मिले नाहीं ऐसा निश्चय करना अर वाकै मोक्षकी प्राप्ति न हो है। बहुरि तू कहै है- उपदेश तो सर्व सुने है, कोई मोक्ष का उपाय करि सकै, कोई न करि सके, सो कारण कहा? सो कारण यहु ही है- जो उपदेश सुनि पुरुषार्थ करै है, सो मोषका उपाय करि सके है अर पुरुषार्थ न करै है सो मोक्षका उपाय न करि सके है। उपदेश तो शिक्षा मात्र है, फल पुरुषार्थ करै तैसा लागै।
द्रव्यलिंगी के मोक्षोपयोगी पुरुषार्थ का अभाव बहुरि प्रश्न- जो द्रव्यलिंगी मुनि मोक्षके अर्थि गृहस्थपनो छोड़ि तपश्चरणादि करै है, तहाँ पुरुषार्थ तो किया, कार्य सिद्ध न भया, तातै पुरुषार्थ किए तो किछू सिद्धि नाहीं।
ताका समाधान- अन्यथा पुरुषार्थकरि फल चाहै, तो कैसे सिद्धि होय? तपश्चरणादि व्यवहार-साधनविष अनुरागी होय प्रवर्त, ताका फल शास्त्रविषै तो शुभबंध कह्या अर यहु तिसतै मोक्ष चाहै है, तो कैसे होय। यहु तो भ्रम है।
बहुरि प्रश्न- जो भ्रमका भी तो कारण कर्म ही है, पुरुषार्थ कहा करे?
ताका उत्तर- सांचा उपदेशनै निर्णय किए भ्रम दूरि हो है ।सो ऐसा पुरुषार्थ न कर है, तिसहीत भ्रम रहै है। निर्णय करनेका पुरुषार्थ करे, तो भ्रमका कारण मोहकर्म ताका भी उपशमादि होय, तब भ्रम दूरि होय जाय । जाते निर्णय करतां परिणामनिकी विशुद्धता होय, तिसत मोहका स्थिति अनुभाग घटै है।
बहुरि प्रश्न- जो निर्णय करनेविष उपयोग न लगावै है, ताका भी तो कारण कर्म है।
ताका समाधान- एकेन्द्रियादिककै विचार करने की शक्ति नाही, तिनकै तो कर्महीका कारण है। याकै तो ज्ञानावरणादिकका क्षयोपशम निर्णय करने की शक्ति भई। जहाँ उपयोग लगावै, तिसहीका निर्णय होय सके। परन्तु यह अन्य निर्णय करनेविष उपयोग लगादै, यहाँ उपयोग न लगावै। सो यह तो याहीक दोष है, कर्मका तो किछु प्रयोजन नाहीं।