________________
नयमा अधिकार-२६५
न भया, तो वाकै आकुलता न हो है अर थोरी बातें कहे ही क्रोध होय आवै, तो याकै आकुलता धनी हो है। बहुरि जैसे गउकै बछड़े किछू भी प्रयोजन नाहीं परन्तु मोह बहुत, तातै वाकी रक्षा करनेकी बहुत आकुलता हो है। बहुरि सुभटके शरीरादिकतै घने कार्य सधै हैं परन्तु रणविषै मानादिककरि शरीरादिकते मोह घटि जाय, तब मरनेकी भी थोरी आकुलता हो है। तातै ऐसा जानना- संसार अवस्थाविषै भी आकुलता घटने बधने ही तैं सुख-दुःख मानिए है। बहुरि आकुलताका घटना बधना रागादिक कषाय घटने बधने के अनुसार है। बहुरि परद्रव्यरूप बाह्य सामग्रीके अनुसारि सुख दुःख नाहीं । कषायतें याकै इच्छा उपजै अर याकी इच्छा अनुसारि बाह्य सामग्री मिलै, तब याका किछू कषाय उपशमनेते आकुलता घटै, तब सुख मानै अर इच्छानुसारि सामग्री न मिले, तब कषाय बधनेते आकुलता बथै, तब दुःख माने। सो है तो ऐसे अर यह जानै- मोकू परद्रव्यके निमित्ततें सुख-दुःख हो है। सो ऐसा जानना भ्रम ही है। ता" इहाँ ऐसा विचार करना, जो संसार अवस्थाविषे किंचित् कषाय घटे सुख मानिए, ताको हित जानिए, तो जहाँ सर्वथा कषाय दूर भए वा कषायके कारण दूरि भए परम निराकुलता होनेकरि अनन्तसुख पाइए ऐसी मोक्षअवस्था को कैसे हित न मानिए? बहुर संभार अदायादिौ न पत्तो पावै, तो भी के तो विषयसामग्री मिलावनेकी आकुलता होय, के विषय-सेवनकी आकुलता होय, के अपने और कोई क्रोधादि कषाय इच्छा उपजे, ताको पूरण करनेकी आकुलता होय, कदाचित् सर्वथा निराकुल होय सके नाही, अभिप्रायविषै तो अनेक प्रकार आकुलता बनी ही रहै। अर बाह्य कोई आकुलता मेटने के उपाय करें, सो प्रथम तो कार्य सिद्ध होय नाहीं अर जो भवितव्य योग” वह कार्य सिद्ध होय जाय, तो तत्काल और आकुलता मेटनेका उपायविर्ष लागे। ऐसे आकुलता मेटनेकी आकुलता निरन्तर रह्या करै। जो ऐसी आकुलता न रहै तो नये-नये विषयसेवनादि कार्यनिविषे काहेको प्रवर्ते है? तात संसार अवस्थाविषै पुण्यका उदयः इन्द्र अहमिन्द्रादि पद पावै तो भी निराकुलता न होय, दुःखी ही रहै। तातै संसार अवस्था हितकारी नाहीं।
बहुरि मोक्षअवस्थाविषै कोई ही प्रकारकी आकुलता रही नाहीं तातै आकुलता मेटनेका उपाय करने का भी प्रयोजन नाहीं । सदा काल शांतरसकरि सुखी रहै । तातें मोक्ष अवस्थाही हितकारी है। पूर्वे भी संसार अवस्थाका दुःखका अर मोक्ष अवस्थाका सुखका विशेष वर्णन किया है, सो इसही प्रयोजनके अर्थि किया है। ताको भी विचारि मोक्षको हितरूप जानि मोक्षका उपाय करना, सर्व उपदेशका तात्पर्य इतना है।
इहाँ प्रश्न- जो मोक्षका उपाय काललब्धि आए भवितव्यानुसारि बने है कि मोहादिकका उपशमादि भए बने है कि अपने पुरुषार्थत उद्यम किए बने है, सो कहो। जो पहिले दोय कारण मिले बने है, तो हमको उपदेश काहेको दीजिए है अर पुरुषार्थत बने है, तो उपदेश सर्व सुनै, तिनविष कोई उपाय कर सकै, कोई न करि सकै सो कारण कहा?
मोक्षसाधन में पुरुषार्थ की मुख्यता ताका समायान- एककार्यहोनेविषे अनेक कारण मिले हैं। सो मोक्षका उपाय बने हैं। तहाँ तो पूर्वोक्त तीनों ही कारण मिले हैं अर न बने हैं, तहाँ तीनों ही कारण न मिले हैं। पूर्वोक्त तीन कारण कहे,