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आठवाँ अधिकार-२६१
करै। बहुरि जैसे रोजनामाविषै तो अनेक रकम जहाँ तहाँ लिखी हैं, तिनिको खाते में ठीक खतावै तो लेना-देना का निश्चय होय तैसे शास्त्रनिविषै तो अनेक प्रकार उपदेश जहाँ-तहाँ दिया है, ताको सम्यग्ज्ञानविषै यथार्थ प्रयोजन लिए पहिचाने तो हित-अहित का निश्चय होय। तातै स्यात्पद की सापेक्ष लिए सम्यग्ज्ञानकरि जे जीव जिनवचननिविषै रमै हैं, ते जीव शीघ्र ही शुद्ध आत्मस्वरूप को प्राप्त हो हैं। मोक्षमागविर्ष पहिला उपाय आगमज्ञान कया है। आगमज्ञान बिना और धर्म का साधन होय सकै नाहीं। तातें तुमको भी यथार्थ बुद्धिकरि आगम अभ्यास करना। तुम्हारा कल्याण होगा।
इति श्रीमोक्षमार्गप्रकाशक नाम शास्त्रविषै उपदेशस्वरूप
प्रतिपादक नामा आठवाँ अधिकार सम्पूर्ण भया ।
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