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आधा अथिकार-२५६
यहाँ कोई प्रश्न करे- जहाँ अन्य-अन्य प्रकार सम्भवै, तहाँ तो स्याद्वाद सम्भये । बहुरि एक ही प्रकारकरि शास्त्रनिविषै परस्पर विरुद्ध भासै तहाँ कहा करिए? जैसे प्रथमानुयोगविषै एक तीर्थंकरकी साथि हजारों मुक्ति गए बताए । करणानुयोगविष छह महीना आठ समयविषै छहसै आट जीव मुक्ति जाय- ऐसा नियम किया। प्रथमानुयोगविषै ऐसा कथन किया-देव देवांगना उपजि पीछे मरि साथ ही मनुष्यादि पर्यायविषै उपजै; करणानुयोगवि देवका सागरों प्रमाण, देवांगनाका पल्यों प्रमाण आयु कह्या । इत्यादि विधि कैसे मिले?
ताका उत्तर- करणानुयोगवि कथन है, सो तो तारतम्य लिए है, अन्य अनुयोगविषै कथन प्रयोजन अनुसार है। ना करगानुयोगका कथन तो जैसे किया तसे ही है। औरनिका कथनकी जैसे विधि मिलें, तैसे मिलाय लेनी हजारों मुनि तीर्थकरकी साथि मुक्त गए वताए, तहाँ बहु जानना-एक ही काल इतने मुक्ति गए नाहीं । जहाँ तीर्थकर गमनादि क्रिया मेटि स्थिर भए, तहाँ तिनके साथ इतने मुनि तिष्ठे, बहुरि मुक्ति आगे-पीछे गए। ऐसे प्रथमानुयोग करणानुयोगका विरोध दूरि हो है; बहुर देव-देवांगना साथि उपजै; पीछे देवांगना चयकर बीच में अन्य पाय धरै, तिनका प्रयोजन न जानि कथन न किया। पीछे वह साथि मनुष्य पर्यायविषै उपजै, ऐसे विधि मिलाए बिरोध दृरि हो है। ऐसे ही अन्यत्र विधि मिलाय लेनी ।
बहुरि प्रश्न जो ऐसे कधननिदिप भी कोई प्रकार विधि मिलै परन्तु कहीं नेमिनाथ स्वामीका सौरीपुरविषै, कहीं द्वारावतीवि जन्म कया, रामचन्द्रादिककी कथा अन्य अन्य प्रकार लिखी इत्यादि। एकेन्द्रियादिक को कहीं सासादन गुणस्थान लिख्या, कहीं न लिख्या इत्यादि इन कथननिकी विधि कैसे मिले?
ताका उत्तर- ऐसे विरोथ लिए कथन कानदोष भए हैं। इस कालविषै प्रत्यक्ष ज्ञानी वा बहुश्रुतनिका तो अभाव भया अर स्तोकबुद्धि ग्रन्थ करने के अधिकारी भए । तिनके भ्रमतें कोई अर्थ अन्यथा भासै ताको तैसे लिखै अथवा इस कालविषै भी कषायो भए हैं सो तिनने कोई कारण पाय अन्यथा कथन लिख्या है। ऐसे अन्यथा कथन भया, ताल जैनशास्त्रनिविर्षे विरोध भासने लागा। जहाँ विरोष भासै तहाँ इतना करना कि इस कथन करनेवाले बहुत प्रमाणीक हैं कि इस कथन करने वाले बहुत प्रमाणीक हैं। ऐसा विचारकरि बड़े आचार्यादिकनिका कह्या कथन प्रमाण करना। बहुरि जिनमतके बहुत शास्त्र हैं तिनकी आम्नाय मिलावनी। जो परम्पराआम्नायतें मिले, सो कथन प्रमाण करना। ऐसे विचार किए भी सत्य- असत्यका निर्णय न होय सकै तो जैसे केवलीको भास्या है तैसे प्रमाण है, ऐसे मानि लेना। जाते देवादिकका वा तत्त्वनिका निर्धार भए बिना तो मोक्षमार्ग होय नाहीं। तिनिका तो निर्धार भी होय सके है, सो कोई इनका स्वरूप विरुद्ध कहै तो आपहीको भासि जाय । बहुरि अन्य कथनका निर्धार न होय वा संशयादि रहै वा अन्यथा भी जानपना होय जाय अर केवलीका कह्या प्रमाण है ऐसा श्रद्धान रहै तो मोक्षमार्गविषै विघ्न नाहीं, ऐसा जानना।
यहाँ कोई तर्क करे- जैसे नाना प्रकार कथन जिनमतविष कह्या, तैसे अन्यमतविषै भी कथन पाइए है। सो तुम्हारे मतके कथनका तो तुम जिस तिस प्रकार स्थापन किया, अन्यमतविष ऐसे कथनको तुम दोष लगावो हो, सो यहु तुम्हारे रागद्वेष है।