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मोक्षमार्ग प्रकाशक-२३४
अब इन अनुयोगनिविषै किस प्रकार व्याख्यान है, सो कहिए है
प्रथमानुयोग में व्याख्यान का विधान प्रथमानुयोगविषै जे मूलकथा है, ते तो जैसी की तैसी ही निरूपिये हैं ।अर तिनिविषै प्रसंग पाय व्याख्यान हो है सो कोई तो जैसा का तैसा हो है, कोई ग्रंथकर्ताका विचार के अनुसारि हो है परन्तु प्रयोजन अन्यथा न हो है।
ताका उदाहरण-जैसे तीर्थंकर देवनिके कल्याणकनिविर्ष इन्द्र आया, यहु कथा तो सत्य है। बहुरि इन्द्र स्तुति करी, ताका व्याख्यान किया, सो इन्द्र तो और ही प्रकार स्तुति कीनी थी अर यहाँ ग्रन्थकर्ता और ही प्रकार स्तुति कीनो लिखी परन्तु स्तुतिरूप प्रयोजन अन्यथा न भया बहुरि परस्पर किनिहूकै वचनालाप भया। तहाँ उनके तो और प्रकार अक्षर निकसे थे, यहाँ ग्रन्थकर्ता अन्य प्रकार कहे परन्तु प्रयोजन एक ही दिखावै है। बहुरि नगर वन संग्रामादिकका नामादिक तो यथावत् ही लिखै अर वर्णन हीनाधिक भी प्रयोजनको पोषता निरूपै हैं। इत्यादि ऐसे ही जानना। बहुरि प्रसंगरूप कथा भी ग्रन्थकर्ता अपना विचार अनुसारि कहै। जैसे धर्मपरीक्षाविध मूर्खनिकी कथा लिखी, सो ए ही कथा मनोवेग कही थी ऐसा नियम नाहीं। परन्तु मूर्खपनाको पोषती कोई वार्ता कही ऐसा अभिप्राय पोषे है। ऐसे ही अन्यत्र जानना ।
यहाँ कोऊ कहे- अयथार्थ कहना तो जैन शास्त्रनिविधै सम्भवै नाही?
ताका उसर-अन्यथा तो वाका नाम है, जो प्रयोजन और का और प्रगट करै। जैसे काहूको कहातू ऐसे कहियो, वान वे ही अक्षर तो न कहे परन्तु तिसही प्रयोजन लिए कहा तो वाको मिथ्यावादी न कहिए, तैसे जानना। जो जैसा का तैसा लिखनेकी सम्प्रदाय होय तो काहूने बहुत प्रकार वैराग्य चितवन किया था, ताका वर्णन सब लिखे ग्रन्थ बधि जाय, किछू न लिखे तो वाका भाव भासै नाहीं। तातै वैराग्यके ठिकाने थोरा बहुत अपना विचार के अनुसारि वैराग्यपोषता ही कथन करै, साग-पोषता न करे, तहाँ प्रयोजन अन्यथा न भया तात याको अयथार्थ न कहिए, ऐसे ही अन्यत्र जानना।
बहुरि प्रथमानुयोगविषै जाकी मुख्यता होय, ताको ही पोषे हैं। जैसे काहूने उपवास किया, ताका तो फल स्तोक था बहुरि याकै अन्यधर्म परिणतिकी विशेषता भई, तातै विशेष उच्चपदकी प्राप्ति भई। तहाँ तिसको उपवासहीका फल निरूपण करै, ऐसे ही अन्य जानने । बहुरि जैसे काहूने शीलादिककी प्रतिज्ञा दृढ़ राखी या नमस्कार मन्त्र स्मरण किया वा अन्य धर्म साधन किया, ताकै कष्ट दूरि भए, अतिशय प्रगट भये, तहाँ तिनही का तैसा फल न भया अर अन्य कोई कर्म के उदयतें वैसे कार्य भए तो भी तिनको तिन शीलादिकका ही फल निरूपण करै। ऐसे ही कोई पापकार्य किया, ताकै तिसहीका तो तैसा फल न भया अर अन्य कर्म उदयतें नीचगतिको प्राप्त भया वा कष्टादिक भए, ताको तिसही पापकार्य का फल निरूपण करै । इत्यादि ऐसे ही जानना।
यहाँ कोऊ कहै- ऐसा झूठा फल दिखावना तो योग्य नाहीं, ऐसे कथनको प्रमाण कैसे कीजिए?