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आटवा अधिकार -२४५
बहुरि चरणानुयोगविषे व्यवहार लोकप्रवृत्ति अपेक्षा ही नामादिक कहिए है। जैसे सम्यक्त्वीको पात्र कह्या, मिथ्यात्वीको अपात्र कह्या। सौ यहाँ जाकै जिनदेवादिकका श्रद्धान पाईए सो तो सम्यक्ची, जाके तिनका श्रद्धान नाहीं सो मिथ्यात्वी जानना। जाते दान देना चरणानुयोगविषै कह्या है, सो चरणानुयोगहीके सम्यक्त्व मिथ्यात्व ग्रहण करने। करणानुयोग अपेक्षा सम्यक्त्व मिथ्यात्व ग्रहे वो ही जीव ग्यारहवें गुणस्थान था अर वो ही अन्तर्मुहूर्तमें पहले गुणस्थान आवै, तहाँ दातार पात्र-अपात्रका कैसे निर्णय करि सके? बहुरि द्रव्यानुयोग अपेक्षा सम्यक्त्व मिथ्यात्व ग्रहे मुनिसंघविषै द्रव्यलिंगी भी हैं, भावलिंगी भी हैं ।सो प्रथम तो तिनका ठीक होना कठिन है जातें बाह्य प्रवृत्ति समान है। अर जो कदाचित् सम्यक्तीको कोई चिह्न कार ठीक पर्ड अर वह वाकी भक्ति न करै, तब औरनिकै संशय होय, याकी भक्ति क्यों न करी। ऐसे वाका मिथ्यादृष्टीपना प्रगट होय, तब संघविषै विरोथ उपजे । तातें यहाँ व्यवहार सम्यक्च मिथ्यात्वकी अपेक्षा कथन जानना।
यहाँ कोई प्रश्न करै-सम्यक्ती तो द्रव्यलिंगीको आपते हीनगुणयुक्त माने है, ताकी भक्ति कैसे करे?
ताका समाधान- व्यवहारधर्मका साथन द्रव्यलिंगीकै बहुत है अर भक्ति करनी सो भी व्यवहार ही है। तातें जैसे कोई धनवान होय परन्तु जो कुलविषै बड़ा होय ताको कुल अपेक्षा बड़ा जानि ताका सत्कार करै, तैसे आप सम्यक्त्वगुणसहित है परन्तु जो व्यवहारधर्मविष प्रधान होय ताको व्यवहारधर्म अपेक्षा गुणाधिक मानि ताकी भक्ति करै है, ऐसा जानना। बहुरि ऐसे ही जो जीव बहुत उपवासादि करें, ताको तपस्वी कहिए है। यद्यपि कोई ध्यान अध्ययनादि विशेष करै है सो उत्कृष्ट तपस्वी है तथापि इहाँ चरणानुयोगविणे बाबतपहीकी प्रधानता है, ता तिसहीको तपस्वी कहिए है। याही प्रकार अन्य नामादिक जानने। ऐसे ही अन्य अनेक प्रकार लिए चरणानुयोगविषै व्याख्यानका विधान जानना।
अब द्रव्यानुयोगविषै कहिए है
द्रव्यानुयोग में व्याख्यान का विधान जीवनिकै जीवादि द्रव्यनिका यथार्थ श्रद्धान जैसे डोय, तैसे विशेष युक्ति हेतु दृष्टान्तादिकका यहाँ निरूपण कीजिए है। जाते या विषै यथार्थ श्रद्धान करावनेका प्रयोजन है। तहाँ यद्यपि जीवादि वस्तु अभेद है तथापि तिनविष भेदकल्पनाकरि व्यवहारतें द्रव्य गुण पर्यायादिकका भेद निरूपण कीजिए है। बहुरि प्रतीति अनायनेके अर्थ अनेक युक्तिकरि उपदेश दीजिए है अथवा प्रमाणनयकार उपदेश दीजिए सो भी युक्ति है। बहुरि वस्तुका अनुमान प्रत्यभिज्ञानादि करनेको हेतु दृष्टांतादिक दीजिए है। ऐसे तहाँ वस्तुकी प्रतीति करावनेको उपदेश दीजिए है। बहुरि यहाँ मोक्षमार्गका श्रद्धान करावनेके अर्थ जीवादि तत्त्वनिका विशेष युक्ति हेतु दृष्टांतादिकरि निरूपण कीजिए है। तहाँ स्वपरभेदविज्ञानादिक जैसे होय तैसे जीव अजीवका निर्णय कीजिए है। बहुरि वीतरागभाव जैसे होय तैसे आम्नवादिकका स्वरूप दिखाइए है। बहुरि तहाँ मुख्यपने ज्ञान