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मोक्षमार्ग प्रकाशक-२५४
ही तिनका त्याग द्वितीय प्रतिमाविषै कह्या, तहाँ विरुद्ध न जानना। जातै सप्तव्यसनविषै तो चोरी आदि कार्य ऐसे ग्रहे हैं, जिनकरि दंडादिक पावै, लोकविषै अतिनिन्दा होय। बहुरि व्रतनिविष चोरी आदि का त्याग करनेयोग्य ऐसे कहे हैं, जे गृहस्थ धर्मविर्ष विरुद्ध होय वा किंचित् लोकनिंद्य होय, ऐसा अर्थ जानना। ऐसे ही अन्यत्र जानना।
बहुरि नाना भावनिकी सापेक्षते एकही भावको अन्य-अन्य प्रकार निरूपण कीजिए है। जैसे कहीं तो महाव्रतादिक चारित्रके भेद कहे, कहीं महाव्रतादि होते भी द्रव्यलिंगीको असंयमी कह्या, तहाँ विरुद्ध न जानना। जाते सम्यग्ज्ञानसहित महाव्रतादिक तो चारित्र हैं अर अज्ञानपूर्वक व्रतादिक भए भी असंयमी ही
है।
बहुरि जैसे पंच मिथ्यात्वनिविषै भी विनय कह्या अर बारह प्रकार तपनिविष भी विनय कला, तहाँ विरुद्ध न जानना। जाते विनय करने योग्य नहीं तिनका भी विनय करि धर्म मानना सो तो विनय मिथ्याच है अर धर्म पद्धतिकरि जे विनय करने योग्य हैं,तिनका यथायोग्य विनय करना, सो विनय तप है। बहुरि जैसे कहीं तो अभिमानकी निन्दा करी, कहीं प्रशंसा करी, तहाँ विरुद्ध न जानना । जात मानकषायतें आपको ऊँचा मनावनेके अर्थ विनयादि न करै, सो अभिमान तो निंद्य ही है अर निर्लोभपनाते दीनता आदि न करे, सो अभिमान प्रशंसा योग्य है।
बहुरि जैसे कहीं चतुराई को निन्दा करी, कहीं प्रशंसा करी, तहाँ विरुद्ध न जानना। जाते मायाकषायते काहूको ठिगनेके अर्थ चतुरई कीजिए, सो तो निंद्य ही है अर विवेक लिए यथासम्भव कार्यकरनेविषै जो चतुराई होय सो श्लाघ्य ही है, ऐसे ही अन्यत्र जानना।
बहुरि एक ही भावकी कहीं तो तिसत उत्कृष्ट भावकी अपेक्षाकरि निन्दा करी होय अर कहीं तिसत हीनभावकी अपेक्षाकरि प्रशंसा करी होय, तहाँ विरुद्ध न जानना। जैसे किसी शुभक्रियाकी जहाँ निन्दा करी होय, तहाँ तो तिसत ऊँची शुभक्रिया वा शुद्धभाव तिनकी अपेक्षा जाननी अर जहाँ प्रशंसा करी होय, तहाँ तिसतै नीची क्रिया वा अशुभक्रिया तिनकी अपेक्षा जाननी, ऐसे ही अन्यत्र जानना। बहुरि ऐसेही काहू जीवकी ऊँचे जीवकी अपेक्षा निन्दा करी होय, तहाँ सर्वथा निन्दा न जाननी। काहूकी नीचे जीवकी अपेक्षा प्रशंसा करी होय, तो सर्वथा प्रशंसा न जाननी। यथासम्भव वाका गुण दोष जानि लेना, ऐसे ही अन्य व्याख्यान जिस अपेक्षा लिए किया होय, तिस अपेक्षा वाका अर्थ समझना।
बहुरि शास्वविषै एक ही शब्दका कहीं तो कोई अर्थ हो है, कहीं कोई अर्थ हो है, तहाँ प्रकरण पहचानि वाका सम्भवता अर्थ जानना। जैसे मोक्षमार्गविष सम्यग्दर्शन कह्या तहाँ दर्शन शब्द का अर्थ श्रद्धान है अर उपयोग वर्णनदिङ्ग दर्शन शब्द का अर्थ वस्तु का सामान्य स्वरूप ग्रहण मात्र है अर इन्द्रियवर्णनविषै दर्शन शब्दका अर्थ नेत्रकरि देखने मात्र है। बहुरि जैसे सूक्ष्म बादर का अर्थ वस्तुनिका प्रमाणादि कथनविषे छोटा प्रमाण लिए होय, ताका नाम सूक्ष्म अर बड़ा प्रमाण लिए होय ताका नाम बादर, ऐसा अर्थ होय । अर पुद्गल स्कंघादिका कथनविष इन्द्रियगम्य न होय सो सूक्ष्म, इन्द्रियगम्य होय सो बादर, ऐसा अर्थ है।