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मोक्षमार्ग प्रकाशक-२५२
पेघका तो निषेध न करना। तैसे समाविषै अध्यात्म उपदेश भए बहुत जीवनिको मोक्षमार्ग की प्राप्ति होय अर काहूकै उलटा पाप प्रवर्त, तो तिसको मुख्यताकरि अध्यात्मशास्त्रनि का तो निषेध न करना। बहुरि अध्यात्मग्रन्थनित कोऊ स्वच्छन्द होय सो तो पहले भी मिथ्यादृष्टी था अब भी मिथ्यादृष्टी ही रह्या इतना ही टोटा पड़े, जो सुगति न होय कुगति होय। अर अध्यात्म उपदेश न भए बहुत जीवनिकै मोक्षमार्ग की प्राप्तिका अभाव होय, सो यामें घने जीवनिका घना बुरा होय । ताः अध्यात्म उपदेशका निषेध न करना।
बहुरि केई जीव कहै हैं- जो द्रव्यानुयोगरूप अध्यात्म उपदेश है, सो उत्कृष्ट है सो ऊँची दशाको प्राप्त होय, तिनको कार्यकारी है। नीचली दशावालों को तो व्रत-संयमादिकका ही उपदेश देना योग्य है।
ताको कहिए है- जिनमतविष तो यह परिपाटी है, जो पहले सम्यक्त होय पीछे व्रत होय। सो सम्यक्त स्वपरका श्रद्धान भए होय अर सो श्रद्धान द्रव्यानुयोगका अभ्यास किए होय । तातै पहले द्रव्यानुयोगके अनुसार श्रद्धानकरि सम्यग्दृष्टि होय, पीछे चरणानुयोग के अनुसार व्रतादिक धारि व्रती होय ऐसे मुख्यपनैं तो नीचली दशाविषे ही द्रव्यानुयोग कार्यकारी है, गौणपने जाको मोक्षमार्ग की प्राप्ति होती न जानिए, ताको पहलै कोई व्रतादिकका उपदेश दीजिए है ताते ऊँची दशावालों को अध्यात्म अभ्यास योग्य है, ऐसा जानि नीचली दशावालों को तहाँत पराङ्मुख होना योग्य नाहीं।
बहुरि जो कहोगे- ऊँचा उपदेश का स्वरूप नीचली दशावालोंको भारी नाहीं।
ताका उत्तर यह है- और तो अनेक प्रकार चतुराई जानै अर यहाँ मूर्खपना प्रगट कीजिए, सो युक्त नाहीं । अभ्यास किए स्वरूप नीके भारी है। अपनी बुद्धि अनुसार थोरा बहुत भारी परन्तु सर्वथा निरुद्यमी होनेको पोषिए, सो तो जिनमार्गका द्वेषी होना है।
बहुरि जो कहोगे- अबार काल निकृष्ट है, तातै उत्कृष्ट अध्यात्म उपदेशकी मुख्यता न करनी।
ताको कहिए है- अबार काल साक्षात् मोक्ष न होने की अपेक्षा निकृष्ट है, आत्मानुभवनादिककार सम्यक्तादिक होना अबार मनै नाही, ताक् आत्मानुभवनादिकके अर्थि द्रव्यानुयोगका अवश्य अभ्यास करना । सोई षट्पाहुइविषै (मोक्षपाहड़में) कमर है:
अज्जवि तिरयणसुखा अप्पामाऊण जति सुरलोए।
लोयंते देवत्तं यत्य धुया णिव्युदि अंति ७७।। ___ याका अर्थ- अबहू त्रिकरणकरि शुद्ध जीव आत्माको ध्यायकरि सुरलोकविष प्राप्त हो हैं वा लौकान्तिकविषै देवपणो पाये हैं। तहाँतै च्युत होय मोक्ष जाय हैं। बहुरि' तातें इस कालविर्षे भी द्रव्यानुयोगका उपदेश मुख्य कहिए।
बहुरि कोई कहै है- द्रव्यानुयोगविषै अध्यात्मशास्त्र है, तहाँ स्वपरभेद-विज्ञानादिकका उपदेश दिया
१. यहाँ 'बहुरि' के आगे ३-४ लाइन का स्थान खरड़ापति में छोड़ा गया है जिससे ज्ञात होता है कि पण्डित जी वहाँ कुछ
और भी लिखना चाहते थे किन्तु लिख नहीं सके।