________________
आठवा अधिकार.-२४७
तो रागादिरहित शुद्धोपयोग यथाख्यात चारित्र भए होय, लो मोह का नाशर्त स्वयमेव होसी। नीचली अवस्थावाला शुद्धोपयोगका साधन कैसे करै अर द्रव्यानुयोग विषे शुद्धोपयोग करनेही का मुख्य उपदेश है, ताते यहाँ छद्मस्थ जिस कालविषै बुद्धिगोचर भक्ति आदि वा हिंसा आदि कार्यरूप परिणामनिको छुड़ाय आत्मानुभवनादि कार्यनिविषै प्रवर्ते तिस काल ताको शुद्धोपयोगी कहिए । यद्यपि यहाँ केवलज्ञानगोचर सूक्ष्मरागादिक हैं तथापि ताकी विवक्षा यहाँ न करी, अपने बुद्धिगोचररागादिक छोडै तिस अपेक्षा याको शुद्धोपयोगी कह्या । ऐसे ही स्वपर श्रद्धानादिक भए सम्यक्त्वादिक कहे, सो बुद्धिगोचर अपेक्षा निरूपण है। सूक्ष्म भावनिकी अपेक्षा गुणस्थानादिविष सम्यक्त्वादिकका निरूपण करणानुयोगविर्ष पाईए है। ऐसे ही अन्यन्न जानने । तात द्रव्यानुयोग के कथन की करणानुयोगते विधि मिलाया चाहै सो कहीं तो मिले, कहीं न मिले है। जैसे यथाख्यातचारित्र भए तो दोऊ अपेक्षा शुद्धोपयोग है, बहुरि नीचली दशाविषै द्रव्यानुयोग अपेक्षा तो कदाचित् शुद्धोपयों होय अर करणानुभंग अशा या कास करायअंश के सद्भाव” शुद्धोपयोग नाहीं। ऐसे ही अन्य कथन जानि लेना।
बहुरि द्रव्यानुयोगविर्ष परमतविषै कहै तत्त्वादिक तिनको असत्य दिखावने के अर्थ तिनका निषेध कीजिए है, तहाँ द्वेषबुद्धि न जाननी। तिनको असत्य दिखाय सत्य श्रद्धान करावने का प्रयोजन जानना । ऐसे ही और भी अनेक प्रकारकरि द्रव्यानुयोगविधै व्याख्यान का विधान है। या प्रकार च्यारों अनुयोग के व्याख्यान का विधान का। सो कोई ग्रन्थविषे एक अनुयोग की, कोई विषै दोय की, कोई विषे तीन की, कोई विषे च्यारों की प्रधानता लिए व्याख्यान हो है। सो जहाँ जैसा सम्भवै, तहाँ तैसा समझ लेना। ___अब इन अनुयोगनिविषै कैसी पद्धति की मुख्यता पाईए है, सो कहिए है
चारों अनुयोगों में व्याख्यान की पद्धति प्रथमानुयोगविषै तो अलंकारशास्त्रनिकी वा काव्यादि शास्त्रनिकी पद्धति मुख्य है जातें अलंकारादिकते मन रंजायमानहोय, सूधी बात कहे ऐसा उपयोग लागै नाहीं जैसा अलंकारादि युक्ति सहित कथनौं उपयोग लागै! बहुरि परोक्ष बात को किछू अधिकताकरि निरूपणकरिए तो वाका स्वरूप नीके भासै। बहुरि करणानुयोगविषे गणित आदि शास्त्रनिकी पद्धति मुख्य है जाते तहाँ द्रव्य क्षेत्र काल भायका प्रमाणादिक निरूपण कीजिए है। सो गणित ग्रन्थनिकी आम्नायत ताका सुगम जानपना हो है। बहुरि चरणानुयोगविषे सुभाषित नीतिशास्त्रनिकी पद्धति मुख्य है जाते यहाँ आचरण करावना है, सो लोकप्रवृत्ति के अनुसार नीतिमार्ग दिखाए वह आचरण करे। बहुरि द्रव्यानुयोगविषै न्यायशास्त्रनिकी पद्धति मुख्य है जातें यहाँ निर्णय करनेका प्रयोजन है अर न्यायशास्त्रनिविष निर्णय करने का मार्ग दिखाया है। ऐसे इन अनुयोगनिविष पद्धति मुख्य है। और भी अनेक पद्धति लिए व्याख्यान इनविष पाईए है।
यहाँ कोऊ कहै- अलंकार गणित नीति न्याय का तो ज्ञान पण्डितनिके होय, तुच्छबुद्धि समझे नाहीं तातें सूथा कथन क्यों न किया?
ताका उत्तर-शास्त्र है सो मुख्यपने पंडित अर चतुरनिके अभ्यास करने योग्य है। सो अलंकारादि