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मोक्षमार्ग प्रकाशक - २३०
नाहीं है । एक मिध्यात्व अर ताके साथ अनन्तानुबंधीका अभाव भए इकतालीस प्रकृतिनिका तो बंध ही मिटि जाय । स्थिति अन्तः कोटाकोटी सागर की रहि जाय। अनुभाग थोरा ही रहि जाय। शीघ्र ही मोक्षपदको पावै । बहुरि मिथ्यात्वका सद्भाव रहे अन्य अनेक उपाय किए भी मोक्षमार्ग न होय । तातें जिस तिस उपायकरि सर्व प्रकार मिध्यात्वका नाश करना योग्य है ।
इति मोक्षमार्गप्रकाशकनाम शास्त्रविषे जैनमतवाले मिथ्यादृष्टीनिका निरूपण जामें भया ऐसा सातवाँ अधिकार सम्पूर्ण भया ॥ ७ ॥
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