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पाँचयाँ अधिकार-१३
बहुरि अंशावतार भए तहां ब्रह्म का अंश तो सर्वत्र कहो हो, इन विषे कहा अधिकता भई? बहुरि कार्य तो तुच्छ तिस के वास्ते आप ब्रह्म अवतार धास्या कहै सो जानिये है बिना अवतार धारै ब्रह्म की शक्ति तिस कार्य के करने की न थी। लातें जो कार्य स्तोक उद्यमतै होइ तहां बहुत उद्यम काहेको करिए? बहुरि अवतारनिविषै मच्छ कच्छादि अवतार भए सो किंचित् कार्य करने के अर्थि हीन तिथंच पर्यायरूप भए, सो कैसे सम्भवे? बहुरि प्रहलाद के अर्थ नरासंह अवतार भए सो हरिणांकुशको ऐसा काहेको होने दिया अर कितेक काल अपने भक्त को काहेको दुःख द्याया। बहुरि ऐसा रूप काहैको धत्या। बहुरि नाभिराजाकै वृषमावतार भया बतावै है सो नाभिको पुत्रपने का सुख उपजावने को अवतार धास्था। घोर तपश्चरण किस अर्थि किया। उनको तो किछू साध्य था ही नाहीं। अर कहेगा जगत् के दिखावने को किया तो कोई अवतारतो तपश्चरण दिखावै, कोई अवतार भोगादिक दिखावे, जगत् किसको भला जानि लागे।
बहुरि (वह) कहै है- एक अरहंत नामका राजा भया' सो वृषभावतार का मत अंगीकार करि जैनमत प्रगट किया सो जैनविषै कोई एक अरहंत भया नाहीं। जो सर्वज्ञपद पाय पूजन योग्य होय ताहीका नाम अर्हन्त है। बहुरि रामकृष्ण इन दोउ अवतारनिको मुख्य कहै हैं सो रामावतार कहा किया। सीता के अर्थि विलापकरि रावणसों लरि वा. मारि राज किया। अर कृष्णावतार पहिले गुयालिया होइ परस्त्री गोपिकानि के अर्थ नाना विपरीति निंद्य चेष्टाकरि, पीछे जरासिंधु आदिको मारि राज किया। सो ऐसे कार्य करने में कहा सिद्धि भई। बहुरि रामकृष्णादिकका एक स्वरूप कहै। सो बीच में इतने काल कहाँ रहे? जो ब्रह्मविषे रहे तो जुदै रहे कि एक रहे। जुदे रहे तो जानिए है, ए ब्रह्मते जुदे रहे हैं। एक रहे तो राम ही कृष्ण भया सीता ही रुक्मणी भई इत्यादि कैसे कहिए है। बहुरि रामायतारविष तो सीताको मुख्य करे अर कृष्णावतारविष सीता को रुक्मणी भई कई अर ताको तो प्रथान न कहे, राधिका कुमारी ताको मुख्य करें। बहुरि पूछे तब कहे राधिका भक्त थी, सो निजस्त्री को छोरि दासी का मुख्य करना कैसे बने? बहुरि कृष्णकै तो राधिकासहित परस्त्री - सेवन के सर्व विथान भए सौ यह भक्ति कैसी करी, ऐसे कार्य तो महानिध हैं। बहुरि रुक्मणी को छोरि राधा को मुख्य करी, सो परस्त्री-सेयनको भला जामि करी होसी । बहुरि एक राधा विष ही आसक्त न भया, अन्य गोपिका कुब्जा' आदि अनेक परस्त्रीनिविषै भी आसक्त भया । सो यहु अवतार ऐसे ही कार्य का अधिकारी भया। बहुरि कहै-लक्ष्मी वाकी स्त्री है अर थनादिकको लक्ष्मी कहै सो ए लो पृथ्वी आदि विषै जैसे पाषाण थूलि है तैसे ही रल सुवर्णादि धन देखिए है। जुदी ही लक्ष्मी कौन जाका भर्तार नारायण है। बहुरि सीतादिकको माया का स्वरूप कहै सो इन विषै आसक्त भए सब मापाविषे आसक्त कैसे न भया। कहां ताई कहिए जो निरूपणकरै सो विरुद्ध करै। परन्तु जीवनिको भोगादिक की वार्ता सुहावे, ताते तिनका कहना वल्लम लाग है। ऐसे अवतार कहै है, इनको ब्रह्मस्वरूप कह हैं। बहुरि औरनिको भी
१. भागवत स्कंथ ५ अ. ६, ७, ११। २. विष्णु. पु. अ. १३ श्लोक ४५ से ६० तक।
ब्रह्मपुराण अ. १८६ और भागवतस्कंध १०, अ. ३०, ४६६ ३. भागवतस्कन्ध १० अ. ४८, 9-991