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छठा अधिकार-१४६
लिखा है कि "वसिते वा ग्रामनगरादी वा स्थातव्यम् ग्रामे विशेषेण न स्थातव्यम्" अर्थ- अथवा वसतिका या ग्राम-नगरादि में ठहरना चाहिए । नगर में पाँच रात ठहरना चाहिए, ग्राम में विशेष नहीं टहरना चाहिए। भगवती आराधना (गाथा ४२३ आचेलक्कु...) की विजयोदया टीका में कहा है कि छहों ऋतुओं में एक-एक मास तक ही एक स्थान पर रहना और अन्य समय में विहार करना नवम स्थितिकल्प है । पृष्ठ ३३३ जीवराज ग्रंथमाला । पद्मपुराण १०६/३० में लिखा है कि "थनदत्तो.....अस्तंगते भानौ श्रमणाश्रममागमत्" अर्थात् धनदत्त सूर्यास्त होने पर मुनियों के आश्रम में पहुँचा । (पृ. ३०१ भाग ३ ज्ञानपीठ प्रकाशन)
थिरकय जोगाणं पुण मुणीणझाणेसु णिच्चल मणाणं ।।
गामम्मि जणाइण्णे सुण्णे रणे य ण विसेसो ॥ धवला पुस्तक १३/१८ अर्थ- जिन्होंने अपने योगों को स्थिर कर लिया है तथा जिनका मन निश्चल है, ऐसे मुनिराजों के लिए मनुष्यों से व्याप्त जनपद, ग्राम और शून्य जंगल में कोई अन्तर नहीं है ।
उक्त आगमों में स्पष्टतः नगर, ग्राम, आश्रम में मुनियों का रहना मूल में ही लिखा है । सारतः वनवासित्व तो साधु के लिए श्रेष्ठ ही है पर नगर, ग्राम अथवा आश्रम में वास करने से मुनिपना नष्ट हो जावे ऐसा नियम नहीं है । हीन संहनन वाले साधु भले ही नगरादि में रहें, इसके लिए ऊपर लिखा आंगम प्रमाण है।
वरं गार्हस्थ्यमेवाघ तपसो भाविजन्मनः ।
सुस्त्रीकटाक्षलुण्टाकलुप्तवैराग्यसम्पदः ।।२००॥ याका अर्थ- अबार होनहार है अनंतसंसार जाते ऐसे तपते गृहस्थपना ही मला है । कैसा है वह तप, प्रभात ही स्त्रीनिके कटाक्षरूपी लुटेरेनिकरि लूटी है वैराग्य संपदा जाकी, ऐसा है । बहुरि योगीन्दुदेवकृत परमात्मप्रकाशविषै ऐसा कह्या है
चिल्लाचिल्लीपुत्थयहि, तूसइ मूढ णिभंतु ।
एयहि लज्जड़ पाणियउ, बंधहहेउ मुणंतु ॥२१४॥ चेला-चेली पुस्तकनिकरि मूढ़ संतुष्ट हो है । प्रान्ति रहित ऐसा ज्ञानी उसे बंध का कारण जानता संता इनिकार लज्जायमान हो है।।
केणवि अप्पट वंचियउ, सिरु लुचि वि छारेण ।
सयलु वि संग ण परिहरिय, जिणवरलिंगधरेण ॥२१६।। किसी जीवकरि अपना आत्मा ठिग्या । सो कौन ? जिहिं जीव जिनवर का लिंग थात्या अर राखकरि माथाका लोचकरि समस्त परिग्रह छांड्या नाहीं ।
जे जिणलिंग धरेवि मुणि इट्ठपरिग्गह लिंति ।
छहिकरेविणु ते वि जिय, सो पुण छद्दि गिलंति ।।२१७॥ याका अर्थ- हे जीव ! जे मुनि जिनलिंग धारि इष्ट परिग्रह को ग्रहै हैं, ते छर्दि करि तिस ही छर्दिकू बहुरि भखै हैं । भाव-यहु निंदनीय है इत्यादि तहाँ कहै हैं ।