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मोक्षमार्ग प्रकाशक - १७४
तत्त्वनिका विशेष जानने को कारण गुणस्थानादिक वा कम्र्म्मादिकको भी जानै । बहुरि तहाँ ऐसा जानना जैसे शीलवती स्त्री उद्यमकरि तो विटपुरुषनिके स्थान न जाय, जो परवश तहाँ जाना बनि जाय, तहाँ कुशील न सेयै तो स्त्री शीलवती ही है। सैसे वीतराग परणति उपायकरि तो रागादिकके कारण परद्रव्यनिविषै न लागे, जो स्वयमेव तिनका जानना होय जाय, तहां रागादिक न करे तो परणति शुद्ध ही है । तातैं स्त्री आदिकी परीषह मुनिनकै होय, तिनिको जानें ही नाहीं अपने स्वरूप ही का जानना रहे है. ऐसा मानना मिथ्या है। उनको जाने तो है परन्तु रागादिक नाहीं करे हैं। या प्रकार परद्रव्यको जानतें भी वीतरागभाव हो है, ऐसा श्रद्धान करना ।
बहुरि वह कहे है ऐसे है तो शास्त्रविषै, ऐसे कैसे कह्या है, जो आत्माका श्रद्धान ज्ञान आचरण सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र है ।
ताका समाधान - अनादितें परद्रव्यविषै आपका श्रद्धान ज्ञान आचरण था, ताके छुड़ावने को यहु उपदेश है। आपही विषै आपका श्रद्धान ज्ञान आचरण भए परद्रव्यविषै रागद्वेषादि परणति करनेका श्रद्धान या ज्ञान वा आचरन मिटि जाय, तब सम्यग्दर्शनादि हो है । जो परद्रव्यका परद्रव्यरूप श्रद्धानादि करने हैं सम्यग्दर्शनादि न होते होय, तो केवलीकै भी तिनका अभाव होय । जहाँ परद्रव्यको बुरा जानना, निज द्रव्य को भला जानना तहाँ तो रागद्वेष सहज ही भया। जहाँ आपको आपरूप परको पररूप यथार्थ जान्या करें, तैसे ही श्रद्धानादिरूप प्रवर्ते, तब ही सम्यग्दर्शनादि हो हैं, ऐसे जानना। तातैं बहुत कहा कहिए, जैसे रागादि मिटावने का श्रखान होय सो ही श्रद्धान सम्यग्दर्शन है। बहुरि जैसे रागादि मिटावने का जानना होइ सोई जानना सम्यग्ज्ञान है। बहुरि जैसे रागादि मिटे सोही आचरण सम्यक्चारित्र है। ऐसा ही मोक्षमार्ग मानना योग्य है । या प्रकार निश्चयनयका आभास लिये एकान्तपक्षके धारी जैनाभास तिनके मिध्यात्व का निरूपण किया।
केवल व्यवहारावलम्बी जैनाभास का निरूपण
अब व्यवहाराभास पक्षके धारक जैनाभासनिके मिथ्यात्वका निरूपण कीजिए है- जिनआगम विषे जहां व्यवहार की मुख्यताकरि उपदेश है, ताको मानि बाह्यसाधनादिक हीका श्रद्धानादिक करे है, तिनके सर्व धर्मके अंग अन्यथारूप होय मिथ्याभावको प्राप्त होय हैं सो विशेष कहिए हैं। यहां ऐसा जानि लेना; व्यवहार धर्म की प्रवृत्ति पुण्यबंध होय हैं, तातैं पापप्रवृत्ति अपेक्षा तो याका निषेध है नाहीं । परन्तु इहाँ जो जीव व्यवहार प्रवृत्ति ही करि सन्तुष्ट होय, सांचा मोक्षमार्गविषै उद्यमी न होय है, ताको मोक्षमार्ग विषे सन्मुख करनेको तिस शुभरूप मिथ्याप्रवृत्तिका भी निषेधरूप निरूपण कीजिए है। जो यहु कथन कीजिए है, ताको सुनि जो शुभ प्रवृत्ति छोड़ि अशुभविषे प्रवृत्ति करोगे तो तुम्हारा बुरा होगा और जो यथार्थ श्रद्धान करि मोक्षमार्गविषै प्रवर्तोगे तो तुम्हारा भला होगा। जैसे कोऊ रोगी निर्गुण औषधिका निषेध सुनि औषधि साधन छोड़ि कुपथ्य करेगा तो वह मरेगा, वैद्य का किछू दोष नाहीं । तैसे कोउ संसारी पुण्यरूपधर्म का निषेध सुनि धर्मसाधन छोड़ि विषयकषायरूप प्रवर्तेगा, तो वह ही नरकादिविषै दुःख पावेगा । उपदेशदाताका तो दोष