________________
मोक्षमार्ग प्रकाशक-१८६
-
-
-
सासादन सम्यग्दृष्टि द्रव्यलिंगी मुनि है। (३) भाव से सम्यग्मिथ्यात्व हो परन्तु बाहर से मुनिबाना हो, वह सम्यग्मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी है। इसी तरह (४) अंसयत सम्यक्त्वी द्रव्यलिंगी तथा (५) देशसंयत द्रव्यलिंगी को भी कहना चाहिए। जिस नग्न मुनि के अन्तरंग में भी छठा गुणस्थान (या आगे के गुणस्थान) हो वह भावलिंगी मुनि है। पर यह सब भी प्रत्यक्षतः केवलज्ञानगम्य है तथा द्रव्यकों के परिज्ञान द्वारा कोई-कोई मनःपर्ययज्ञानी तथा अवधिज्ञानी भी जानते हैं। अन्य छद्मस्थ जीव मुनि के अन्तरंग को नहीं जान पाते। - पं. रतनचन्द्र मुख्तार : व्यक्तित्व और कृतित्व पृ. ७६४-६५, द्रव्यनिर्ग्रन्था नरा भावेन असंयता.... त्रि.सा. ५४५ टीका; धवल १३/१४१, धवल ४/२०८ आदि)।
बंध तत्त्व के श्रद्धान का अन्यथा रूप बहुरि बंधतत्त्वविषे जे अशुभभावनिकरि नरकादिरूप पापका बंध होय, ताको तो बुरा जानै अर शुभभावनिकरि देवादि रूप पुण्यका बंध होय, ताको भला जान । सो सर्व ही जीवनिकै दुःखसामग्रीविषै द्वेष, सुखसामग्रीविषै राग पाईए है, सो ही याकै राग द्वेष करनेका श्रद्धान भया। जैसा इस पर्यायसंबंधी सुखदुःखसामग्रीविषै राग द्वेष करना तैसा ही आगामी पर्यायसंबंधी सुख-दुःख सामग्रीविषै राग द्वेष करना। बहुरि शुभअशुभभावनिकरि पुण्यपापका वेशेष तो अघाति कर्मनिविषे हो है। सो अघातिकर्म आत्मगुणके घातक नाहीं । बहुरि शुभ अशुभ भावनिविषै घातिकर्मनिका तो निरंतर बंध होय, ते सर्व पापरूप ही हैं अर तेई आत्मगुणके घातक हैं। तातै अशुद्ध भावनिकरि कर्मबंध होय, तिसविर्ष भला बुरा जानना सोई मिथ्या श्रद्धान है। सो ऐसे श्रद्धानः बंधका भी यार्क सत्य श्रद्धान नाहीं।
संवर तत्त्व के श्रद्धान का अन्यथा रूप बहुरि संवरतत्त्वविषै अहिंसादिरूप शुभास्रव भाव तिनको संवर जाने है। सो एक कारणनै पुण्यबंध भी मानै अर संवर भी माने, सो बनै नाहीं।
यहाँ प्रश्न-जो मुनिनकै एक काल एकभाव हो है, तहाँ उनके बंध भी हो है अर संवर निर्जरा भी हो है, सो कैसे है?
ताका समाधान-यह भाव मिश्ररूप है। किछू चीतराग भया है, किछू सराग रह्या है। जे अंश वीतराग भए तिनकरि संवर है अर जे अंश सराग रहे तिनकरि बंध है। सो एक भावतें तो दोय कार्य बने परन्तु एक प्रशस्तरागहीत पुण्यासव भी मानना अर संवर-निर्जरा भी मानना सो आम है। मिनभावविषै भी यहु सरागता है, यह विरागता है; ऐसी पहिचान सम्यग्दृष्टिहीकै होय। तातें अवशेष सरागताको हेय श्रद्धे हैं 1 मिथ्यादृष्टीकै ऐसी पहिचान नाही तातै सरागभाव विष संवरका प्रमकरि प्रशस्त रागरूप कानिको उपादेय श्रद्धहे है।