________________
मोक्षमार्ग प्रकाशक-१६४
है। तुम शुद्ध ही अनुभवन काहेको करो हो। अर पर्यायदृष्टि करि करो हो, तो तुम्हारे तो वर्तमान अशुख पर्याय है। तुम आपको शुद्ध कैसे मानो हो? बहुरि जो शक्ति अपेक्षा शुद्ध मानो हो, तो मैं ऐसा होने योग्य हूँ ऐसा मानो। मैं ऐसा हूँ ऐसे काहेको मानो हो। तातें आपको शुखरूप चिंतवन करना प्रम है। काहेते- तुम आपको सिद्धसमान मान्या, तो यहु संसार अवस्था कौनकी है। अर तुम्हारै केवलज्ञानादिक हैं, तो ये मतिज्ञानादिक कौनके हैं। अर द्रव्यकर्म नोकर्मरहित हो, तो ज्ञानादिककी व्यक्तता क्यों नहीं? परमानन्दमय हो, तो अब कर्त्तव्य कहा रह्या? जन्म - मरणादि दुःख ही नाही, तो दुःखी कैसे होते हो? तातै अन्य अवस्थाविषै अन्य अवस्था मानना भ्रम है।
यहाँ कोऊ कहै- शास्त्रविषै शुद्ध चितवन करनेका उपदेश कैसे दिया है?
ताका उत्तर- एक तो द्रव्य अपेक्षा शुद्धपना है, एक पर्याय अपेक्षा शुद्धपना है। तहाँ द्रव्यअपेक्षा तो परद्रव्यतै भिन्नपनो वा अपने भावनित अभिन्नपनो ताका नाम शुद्धपना है। अर पर्यायअपेक्षा
औपाधिकभावनिनाः अभाव होग, जाका नाममा मुद्धाना है । सो शुद्ध चितवनविष द्रव्य अपेक्षा शुखपना ग्रहण किया है। सोई समयसारव्याख्या विषै कह्या हैएष एयाशेषद्रव्यान्तरभायेभ्यो भिन्नत्वेनोपास्यमानः शुद्ध इत्यभिलप्यते।
(समयसार आत्मख्याति टीका गाथा. ६) याका अर्थ-जो आत्मा प्रमत्त अप्रमत्त नाहीं है, सो यहु ही समस्त परद्रव्यनिके भावनित भिन्नपनेकरि सेया हुआ शुद्ध ऐसा कहिए है। बहुरि तहाँ ही ऐसा कह्या है। सकलकारकचक्रप्रक्रियोत्तीर्णनिर्मलानुभूतिमात्रत्वाच्छुद्धः।
(समयसार आत्मख्याति टीका गाथा, ७३) याका अर्थ- समस्त ही कर्ता कर्म आदि कारकनिका समूहकी प्रक्रियातें पारंगत ऐसी जो निर्मल अनुभूति जो अभेद ज्ञान तन्मात्र है, तातै शुद्ध है।
ताते ऐसे शुद्ध शब्द का अर्थ जानना। बहुरि ऐसे ही केवल शब्द का अर्थ जानना। जो परमावत मिन्न निष्केवल आप ही ताका नाम केवल है। ऐसे ही अन्य यथार्थ अर्थ अवधारना। पर्याय अपेक्षा शुद्धपनो माने वा केवली आपको माने महाविपरीत होय। तातें आपको द्रव्यपर्यायरूप अवलोकना। द्रव्यकरि सामान्यस्वरूप अवलोकना, पर्यायकरि अवस्था विशेष अवधारना । ऐसे ही चिंतवन किए सम्यग्दृष्टी हो है। जाते साँचा अवलोके बिना सम्यग्दृष्टी कैसे नाम पावै ।
शास्त्राभ्यास की निरर्थकता का निषेध बहुरि मोक्षमार्गविषै तो रागादिक मेटनेका श्रद्धान ज्ञान आचरण करना है सो तो विचार ही नाही। आपका शुद्ध अनुभवनते ही आपको सम्यग्दृष्टी मानि अन्य सर्व साधननिका निषेध करै है; शास्त्र अभ्यास करना निरर्थक बताये है, द्रव्यादिकका वा गुणस्थान मार्गणा त्रिलोकादिका विचारको विकल्प ठहरादै है,