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मोक्षमार्ग प्रकाशक-१६६
हैं। बहुरि निर्विकल्प दशा सदा रहै नाहीं। जात छद्मस्थका उपयोग एकरूप उत्कृष्ट रहै तो अन्तर्मुहूर्त रहे। बहुरि तू कहेगा- मैं आत्मस्वरूप ही का चितवन अनेक प्रकार किया करूंगा, सो सामान्य चितवनविषे तो अनेक प्रकार बनै नाहीं। अर विशेष करेगा, तब द्रव्य गुण पर्याय गुणस्थान मार्गणा शुद्ध अशुद्ध अवस्था इत्यादि विचार होयगा। बहुरि सुनि केवल आत्मज्ञानहीत तो मोक्षमार्ग होइ नाही । सप्ततत्त्वनिका श्रद्धान ज्ञान भए वा रागादिक दूरि किए मोक्षमार्ग होगा। सो सप्त तत्त्वनिका विशेष जानने को जीव अजीवके विशेष वा कर्मके आस्रव बंधादिकका विशेष अवश्य जानना योग्य है, जानें सम्यग्दर्शन ज्ञानकी प्राप्ति होय। बहुरि तहाँ पीग्दै कानिक दूरि का हो । यो के गागादिक भावने के कारण तिनको छोड़ि जे रागादिक घटावने के कारण होय तहाँ उपयोगको लगावना। सो द्रव्यादिकका गुणस्थानादिकका विचार रागादिक घटावनेको कारण है। इन विषै कोई रागादिकका निमित्त नाहीं। तारौं सम्यग्दृष्टी भए पीछैभी इहाँ ही उपयोग लगावना।
बहुरि वह कहै है- रागादि मिटावनेको कारण होय तिनविषे तो उपयोग लगावना परन्तु त्रिलोकवर्ती जीवनिका गति आदि विचार करना वा कर्मका बंध उदय सत्तादिक का घणा विशेष जानना वा त्रिलोकका आकार प्रमाणादिक जानना इत्यादि विचार कौन कार्यकारी है?
ताका उत्तर- इनिको भी विचार रागादिक बधते नाहीं । जाते ए ज्ञेय याकै इष्ट अनिष्टरूप हैं नाहीं। तातें वर्तमान रागादिकको कारण नाहीं । बहुरि इनको विशेष जाने ।त्वज्ञान निर्मल होय, तातै आगामी रागादिक घटाबनेको ही कारण हैं। तातें कार्यकारी हैं।
बहुरि दह कहै है- स्वर्ग-नरकादिकको जाने तहाँ रागद्वेष हो है।
ताका समायान- ज्ञानीकै तो ऐसी बुद्धि होइ नाहीं, अज्ञानीकै होय! तहां पाप छोरि पुण्यकार्यविष लागे तहाँ किछू रागादिक घटै ही हैं।
बहुरि वह कहै है- शास्त्रविर्ष ऐसा उपदेश है, प्रयोजनभूत थोरा ही जानना कार्यकारी है तातें बहुत विकल्प काहेको कीजिए।
ताका उत्तर- जे जीव अन्य बहुत जानै अर प्रयोजनभूतको न जानै अथवा जिनकी बहुत जानने की शक्ति नाही, तिनको यह उपदेश दिया है। बहुरि जाकी बहुत जाननेकी शक्ति होय, ताको तो यह कह्या नाहीं जो बहुत जाने बुरा होगा। जेता बहुत जानेगा, तितना प्रयोजनभूत जानना निर्मल होगा। जाते शास्त्रविषै ऐसा कह्या है
- सामान्यशास्त्रतो नूनं विशेषो बलवान् भयेत् याका अर्थ- यहु सामान्य शास्त्रनै विशेष बलवान है। विशेषहीत नीके निर्णय हो है तातै विशेष जानना योग्य है।
तपश्चरण वृथा क्लेश नहीं है बहुरि यह तपश्चरणको वृथा क्लेश ठेहरावै है। सो मोक्षमार्गी भए तो संसारी जीवनित उलटी