________________
मोक्षमार्ग प्रकाशक-१५०
ऐसे शास्त्रनिविष कुगुरुका वा तिनके आचरनका दा तिनकी सुश्रूषाका निषेध किया है, सो जानना। बहुरि जहाँ मुनिकै धात्रीदूतआदि छयालीस दोष आहारादिविषै कहै हैं, तहाँ गृहस्थनिके बालकनिको प्रसन्न करना, समाचार कहना, मंत्र-औषधि-ज्योतिषादि कार्य बतावना इत्यादि, बहुरि किया कराया अनुमोद्या भोजन लेना इत्यादि क्रिया का निषेध किया है। सो अब कालदोषः इनहीं दोषनिको लगाय आहारादि ग्रहै
बहुरि पार्श्वस्थ कुशीलादि प्रष्टाचारी मुनिनका निषेय किया है, तिन ही का लक्षणनिको धरै हैं । इतना विशेष-वे द्रव्यां तो नग्न रहै हैं, ए नाना परिग्रह राखै हैं। बहुरि तहाँ मुनिनकै भ्रमरी आदि आहार लेनेकी विधि कही है। ए आसक्त होय दातारके प्राण पीडि आहारादि ग्रहै हैं। बहुरि गृहस्थधर्मविषै भी उचित नाहीं या अन्याय लोकनिंद्य पापरूप कार्य तिनको करते प्रत्यक्ष देखिए है। बहुरि जिनबिम्ब शास्त्रादिक सर्वोत्कृष्ट पूज्य तिनका तो अविनय करै है। बहुरि आप तिनतें भी महंतता राखि ऊंचा बैठना आदि प्रवृत्तिको धारै हैं। इत्यादि अनेक विपरीतता प्रत्यक्ष भासै अर आपको मुनि माने, मूलगुणादिकके धारक कहावै। ऐसे ही अपनी महिमा करावै। बहुरि गृहस्थ भोले उनकरि प्रशंसादिककरि ठिगे हुए थर्मका विचार करे नाहीं। उनकी भक्तिविष तत्पर से है । सो बड़े ना को बड़ा मानना, ३ मिथ्यात्वका फल कैसे अनंत संसार न होय। एक जिनवचनको अन्यथा मान महापापी होना शास्त्रविष का है। यहाँ तो जिनवचनकी किछू बात ही राखी नाहीं। इस समान और पाप कौन है?
__ अब यहाँ कुयुक्तिकरि जे तिनि कुगुरुनिका स्थापन करै हैं, तिनका निराकरण कीजिए है तहाँ वह कहै है,- गुरु विना तो निगुरा होय अर वैसे गुरु अवार दीसे नाहीं। तातै इनहीको गुरु मानना।
, ताका उत्तर- निगुरा तो वाका नाम है, जो गुरु मानै ही नाहीं । बहुरि जो गुरु को तो माने अर इस क्षेत्रविषै गुरुका लक्षण न देखि काहूको गुरु न मानै, तो इस श्रद्धान” तो निगुरा होता नाहीं । जैसे नास्तिक्य तो वाका नाम है, जो परमेश्वर को मान ही नाहीं। बहुरि जो परमेश्वरको तो मानै अर इस क्षेत्रविषै परमेश्वरका लक्षण न देखि काहू को परमेश्वर न माने, तो नास्तिक्य तो होता नाहीं । तैसे ही यहु जानना।
बहुरि वह कहै है, जैनशास्त्रनिविर्ष अबार केवलीका तो अभाव कह्या है, मुनिका तो अभाव कह्या माहीं।
ताका उत्तर-ऐसा तो कह्या नाही, इनि देशनिविष सद्भाव रहेगा : भरतक्षेत्रविष कहै हैं, सो भरतक्षेत्र तो बहुत बड़ा है। कहीं सद्भाव होगा, तातै अभाव न कहा है। जो तुम रहो हो तिस ही क्षेत्रविषै सद्भाव मानोगे, तो जहाँ ऐसे भी गुरु न पावोगे, तहाँ जावोगे तब किसको गुरु मानोगे। जैसे हंसनिका सद्भाव अबार कहा है अर हंस दीसते नाही, तो और पक्षीनिको तो हंस मान्या जाता नाहीं । तैसे मुनिनिका सद्भाव अबार कहा है अर मुनि दीसते नाहीं, तो औरनिको तो मुनि मान्या जाय नाही।
बहुरि वह कहै है, एक अक्षर के दाता को गुरु माने हैं। जे शास्त्र सिखायै वा सुनावै, तिनको गुरु कैसे न मानिए?