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भाक्षमार्ग प्रकाशक-२
वा स्वर्गादिक कैसे भए? हम कहेंगे परमब्रह्म कैसे भया। तू कहेगा इनकी रचना ऐसी कौनकरी? हम कहेंगे परमब्रह्म को ऐसा कौन बनाया? तू कहेगा परमब्रह्म स्वयंसिद्ध है; हम कहे हैं जीवादिक वा स्वर्गादिक स्वयंसिद्ध हैं; तू कहेगा इनकी अर परब्रह्म की समानता कैसे सम्मकै? तो सम्भयनेविषै दूषण बताय। लोकको नवा उपजावना ताका नाश करना तिसविषै तो हम अनेक दोष दिखाये। लोकको अनादिनिधन मानने ते कहा दोष है? सो तू बताय। जो तू परमब्रह्म मानै है सो जुदा ही कोई है नाहीं। ए संसारविषै जीव हैं ते ही यथार्थ ज्ञानकरि मोक्षमार्ग साधनः सर्वज्ञ वीतराग हो हैं।
इहाँ प्रश्न- जो तुम तो न्यारे-न्यारे जीव अनादिनिधन कहो हो। मुक्त भए पीछै तो निराकार हो है, तहाँ न्यारे-न्यारे कैसे सम्भ?
ताका समाधान-जो मुक्त भए पीछे सर्वज्ञको दीसै है कि नाहीं दीसै है। जो दीसै है तो किछू आकार दीसता ही होगा। बिना आकार देखे कहा देख्या, अर न दीसै है तो कै तो यस्तु ही नाही, के सर्वज्ञ नाहीं। ताते इन्द्रियज्ञानगम्य आकार नाही तिस अपेक्षा निराकार है अर सर्वज्ञ ज्ञानगम्य है तातै आकारयान् हैं। जब आकारवान् ठहरया तब जुदा-जुदा होय तो कहा दोष लागै? बहुरि जो तू जाति अपेक्षा एक कहै तो हम भी मानें हैं। जैसे गेहूँ भिन्न-भिन्न है तिनकी जाति एक है ऐसे एक मानै तो किछू दोष है नाहीं। या प्रकार यथार्थ श्रद्धानकरि लोकवि सर्व पदार्थ अकृत्रिम जुदे-जुदे अनादिनिधन मानने। बहुरि जो वृथा ही अमकरि साँच झूट का निर्णय न करे तो तू जानै, तेरे श्रद्धान का फल तू पावेगा।
ब्रह्म से कुलप्रवृत्ति आदि का प्रतिषेध बहुरि वे ही ब्रह्म पुत्रपौत्रादिकरि कुलप्रवृत्ति कहे हैं। बहुरि कुलनिविर्षे राक्षस मनुष्य देव तिर्यचनिकै परस्पर प्रसूति भेद बतावै हैं। तहाँ देवते मनुष्य वा मनुष्यतें देव या तिर्यंचते मनुष्य इत्यादि कोई माता कोई पिता” कोई पुत्रपुत्री का उपजना बतावै सो कैसे सम्भवै? बहुरि मनही करि वा पवनादिकार या वीर्य सूंघने आदिकरि प्रसूति होनी बतावै है सो प्रत्यक्षविरुद्ध भारी है। ऐसे होते पुत्रपौत्रादिक का नियम कैसे रह्या? बहुरि बड़े-बड़े महन्तनिको अन्य-अन्य माता-पिताते भए कहै हैं। सो महंत पुरुष कुशीली माता-पिताकै कैसे उपजै? यहु तो लोकविध गालि है। ऐसा कहि उनकी महंतता काहेको कहिए है।
अवतार मीमांसा बहुरि गणेशादिक की मैल आदि करि उत्पत्ति बतावै है या काहूके अंग काहूकै जुरै बतावै है। इत्यादि अनेक प्रत्यक्ष विरुद्ध कहै है। बहुरि चोईस अवतार' भए कहै है, तहाँ कई अवतारनिको पूर्णावतार कहै हैं। केईनिको अंशावतार कहै हैं। सो पूर्णावतार भए तब ब्रह्म अन्यत्र व्यापक रख्या कि न रहा। जो रहा तो इन अवतारनिको पूर्णावतार काहे को कहो। जो व्यापक) न रहा तो एतावन्मात्र ही ब्रह्म रहा। १. सनाकुमार शूकरावतार २ देवर्षि नारद ३ नर नारायण ४ कपिल ५ दत्तात्रय ६ यमपुरुष ७ अषमावतार ८ पृथु
अवतार ६ मत्स्य १० कप धन्वन्तरि १२ मोहिनी ३ नृसिंहवतार १४ वामन १५ परशुराम १६ व्यास १७ हंस १ रामावतार १६ कृष्णावतार २० इपग्रीव २७ हरि २२ बुद्ध २३ और बल्कि ये २४ अवतार माने जाते है।