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पाँचवाँ अधिकार -१११
और पूरि देशको वा बहुतालको बातें परस्पती सुनिए ही हैं, तातै सबका जानना तेरे नाही, तू इतना ही लोक कैसे कहै हैं?
बहुरि चाकमतविषै कहै हैं कि पृथ्वी, अप, तेज, वायु, आकाश मिले चेतना होय आवै है। सो मरते पृथ्वी आदि यहाँ रही। चेतनावान् पदार्थ गया सो व्यंतरादि भया, प्रत्यक्ष जुदे-जुदे देखिए है। बहुरि एक शरीरविषै पृथ्वी आदि तो भिन्न-भिन्न मार्स है, चेतना एक भासे है। जो पृथ्वी आदि के आधार चेतना होय तो हाड़ लोहू उश्वासादिककै जुदी-जुदी चेतना होय। बहुरि हस्तादिक काटे जैसे वाकी साथि वर्णादिक रहै तैसे चेतना भी रहै है। बहुरि अहंकार, बुद्धि तो चेतनाके है सो पृथ्वी आदि रूप शरीर तो यहाँ ही रह्या, व्यंतरादि पर्यायविषै पूर्वपर्याय का अहंपना मानना देखिए है सो कैसे हो है। बहुरि पूर्वपर्यायकै गुह्य समाचार प्रगट करै सो यह जानना किसकी साथि गया, जाकी साथि जानना गया सोई आत्मा है।
बहुरि चार्वाकमतयिषै खाना, पीना, भोग-विलास करना इत्यादि स्वच्छंद वृत्तिको उपदेशै है सो ऐसे तो जगत् स्वयमेव ही प्रवर्ते है। तहाँ शास्त्रादि बनाय कहा भला होनेका उपदेश दिया। बहुरि तू कहेगा, तपश्चरण शील संयमादि छुड़ायनेके अर्थि उपदेश दिया तो इनि कार्यनिविष तो कषाय घटनेते आकुलता घटे है तातें यहाँ ही सुखी होना हो है, बहुरि यश आदि हो है, तू इनिको छुड़ाय कहा भला करै है। विषयासक्त
जीवनिको सुहावती बातें कहि अपना वा औरनिका बुरा करनेका भय नाही, स्वच्छन्द होय विषय सेवने के • अर्थि ऐसी झूठी युक्ति बनावै है। ऐसे चार्वाकमतका निरूपण किया।
विशेष : चार्वाक मत नास्तिक है। वह ईश्वर, परलोक को नहीं मानता चिार्वाक मत का कोई निजी ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। चार्वाक का अभिप्राय वह व्यक्ति है जिसकी वाणी या वचन (वाक्) चारु या मनोहारिणी हो अर्थात् साधारण लोगों को पसन्द आने वाली हो। इस मत को लोकायत भी कहते हैं। चार्वाक मत के मुख्य मन्तव्य इस प्रकार हैं-१.प्रत्यक्ष प्रमाणवाद-प्रत्यक्ष ही एकमात्र विश्वसनीय प्रमाण है। २. भौतिकयाद-भूतचैतन्यवाद- आत्मा अर्थात् चैतन्य चार महाभूतों का विकार मात्र है यानी शरीर से भिन्न कोई आत्मा नहीं है ३. ऐहिक सुखवाद-जीवन का ध्येय इसी जीवन का सुख है, अर्थात् स्वर्ग तथा मोक्ष का निषेध। चार्वाक मत के प्रवर्तक वृहस्पति थे। बृहस्पति द्वारा रचित सूत्र वार्हस्पत्य सूत्र कहलाते हैं। इस पर भागुरी टीका भी है। चार्वाक सिद्धान्त प्राचीन काल से प्रचलित है। चार्वाक दर्शन अनुमान प्रमाण को नहीं मानता अतः यह ईश्वर, आत्मा व परलोक को कैसे मानेगा? नहीं मानता। चार्वाक मत ने वेदों का खुला विरोध किया है। उन्होंने वेद-रचयिता को भांड, धूर्त और निशाचर कहा है। (भारतीय दर्शन पृ. १४४ से १५३ डॉ. एन. के. देवराज)
__ दिगम्बर जैन ग्रन्थ श्लोकवार्तिक भाग ६ पृष्ठ ४०८ (भाषा) में चार्वाकों को वैज्ञानिक (आधुनिक वैज्ञानिक) नाम दिया है।