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मोक्षमार्ग प्रकाशक-११४
मनावनेके अर्थि कल्पित युक्तिकरि अन्यथा निरूपण किया है। सो अद्वैतब्रह्मादिकका निरूपणकरि जीव अजीवका अर स्वच्छन्दवृत्ति पोषनेकरि आस्रव संवरादिकका अर सकषायीवत् वा अचेतनवत् मोक्षकहनेकार मोक्षका अयथार्थ श्रद्धानको पोषे हैं। तातै अन्यमतनिका अन्यथापना प्रगट किया है। इनिका अन्यथापना भासै तो तत्त्वश्रद्धानविष रुचिवंत होय। उनकी युक्तिकर भ्रम न उपजै। ऐसे अन्यमतनिका निरूपण किया।
अन्य मत के ग्रन्थोद्धरणों से जैनधर्म की प्राचीनता और समीचीनता अब अन्यमतनिके शास्त्रनिकी ही साखिकर जिनमत की समीचीनता वा प्राचीनता प्रगट कीजिए
बड़ो योगवाशिष्ठ छत्तीस हजार श्लोक प्रमाण, ताको प्रथम वैराग्यप्रकरण, तहाँ अहंकारनिषेध अध्यायविषै वशिष्ट अर रामका संवादविर्ष ऐसा कह्या हैरामोऽवाच
"नाहं रामो न मे वांछा भावेषु च न मे मनः ।
शांतिमास्थातुमिच्छामि स्वात्मन्येव जिनो यथा ।।८।। या विषै रामजी जिनसमान होने की इच्छा करी तातें रामजीतें जिनदेवका उत्तमपना प्रगट भया अर प्राचीनपना प्रगट भाग : महुरि 'दक्षिणार्ति बहानगर' निट कया है शिवोऽवाच
“जैनमार्गरतो जैनो जितक्रोधो जितामयः ।। यहाँ भगवत् का नाम जैनमार्गविप रत अर जैन कह्या, सो यामें जैनमार्ग की प्रधानता व प्राचीनता प्रगट भई। बहुरि 'वैशंपायन सहस्रनाम' विष कह्या है
कालनेमिमहावीरः शूरः शोरािर्जनेश्वरः।' यहाँ भगवान का नाम जिनेश्वर कह्या, तातै जिनेश्वर भगवान हैं। बहुरि दुर्वासराषि वृत 'महिम्नस्तोत्र' विषै ऐसा कह्या है
तत्तदर्शनमुख्यशक्तिरिति च त्वं ब्रह्मकर्मेश्वरी।
कर्ताईन् पुरुषो हरिश्च सविता बुद्धः शिवस्त्वं गुरुः ।।७।। यहाँ ‘अरहंत तुम हो' ऐसे भगवंत की स्तुति करी, तातै अरहंतकै भगवंतपनो प्रगट भयो। बहुरि हनुमन्नाटकविष ऐसे कहा है
१. अर्थात् में राम नहीं हूँ, मेरी कुछ इच्छा नहीं है और भावों वा पदार्थों में मेरा मन नहीं है। मैं तो जिनदेव के समान
अपनी आत्मा में ही शान्ति स्थापना करना चाहता हूँ।