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पांचवा अधिकार-१०९
बौद्धमत निराकरण अब बौद्ध मतका स्वरूप कहिए है
बौद्धमतविष च्यारि आर्यसत्य' प्ररूपे है दुःख, आयतन, समुदय, मार्ग। तहाँ संसारीकै स्कंधरूप सो दुःख है। सो पाँच प्रकार है - विज्ञान, वेदना, संज्ञा, संस्कार, रूप। तहाँ रूपादिकका जानना सो विज्ञान है, सुख दुःख का अनुभवना सो वेदना है, सूताका जागना सो संज्ञा है, पढ़या था सो याद करना सो सरकार है, रूपका थारना सो रूप। सो यहाँ विज्ञानादिकको दुःख कह्या सो पिथ्या है। दुःख तो काम क्रोधादिक है, ज्ञान दुःख नाहीं। यह तो प्रत्यक्ष देखिए है। काहू के ज्ञान थोरा है अर क्रोध लोभादिक बहुत है सो दुःखी है। काहूकै ज्ञान बहुत है, काम क्रोधादि स्तोक है वा नाही है सो सुखी है। तातै विज्ञानादिक दुःख नाहीं है। बहुरि आयतन बारह कहे हैं। पाँच तो इन्द्रिय अर तिनिके शब्दादिक पाँच विषय अर एक मन, एक धर्मायतन। सो ये आयतन किस अर्थि कहे। क्षणिक सबको कहै, इनिका कहा प्रयोजन हैं? बहुरि जाते रागादिकका गण निपजे ऐसा आत्मा अर आत्मीय है नाम जाका सो समुदय है। तहां अहंरूप आत्मा अर ममरूप आत्मीय जानना, सो क्षणिक मान इनिका भी कहने का किछु प्रयोजन नाहीं। बहुरि सर्व संस्कार क्षणिक हैं, ऐसी वासना सो मार्ग है सो प्रत्यक्ष बहुत काल स्थायी केई वस्तु अवलोकिए है। तू कहेगा एक अवस्था न रहै है तो यह हम भी माने हैं। सूक्ष्मपर्याय क्षणस्थायी है। बहुरि तिस वस्तु ही का नाश माने, यहु तो होता न दीसै है, हम कैसे माने? बहुरि बाल-वृद्धादि अवस्थाविषै एक आत्मा का अस्तित्व भासै है। जो एक नाही है तो पूर्व उत्तर कार्यका एक कर्ता कैसे मान है। जो तू कहेगा संस्कारते है तो संस्कार कौन के हैं। जाके हैं सो नित्य है कि क्षणिक है। नित्य है तो सर्व क्षणिक कैसे कहै है। क्षणिक है तो जाका आधार ही क्षणिक तिस संस्कारकी परम्परा कैसे कहै है। बहुरि सर्व क्षणिक भया तब आप भी क्षणिक भया । तू ऐसी वासनाको मार्ग कह है सो इस मार्गका फल को आप तो पावै ही नाही, काहेको इस मार्ग विषै प्रवर्त। बहुरि तेरे मत विष निरर्थक शास्त्र काहे को किए। उपदेश तो किछु कर्तव्यकरि फल पावै तिसके अर्थ दीजिए है। ऐसे यह मार्ग मिथ्या है। बहुरि रागादिक ज्ञानसन्तान वासना का उच्छेद जो निरोध, ताको मोक्ष कहै है। सो क्षणिक भया तब मोक्ष कौनकै कहै। अर रागादिकका अभाव होना तो हम भी माने हैं। अर ज्ञानादिक अपने स्वरूपका अभाव भए तो आपका अभाव होय ताका उपाय करना कैसे हितकारी होय। १. दुःखमायतनं चैव ततः समुदयो मतः । ___ मार्गश्चेत्यस्य च व्याख्या क्रमेण श्रूयतामतः ।।३६ ।। - वि.वि. २. दुःखं संसारिणः स्कन्धास्ते च पञ्च प्रकीर्तिताः।
विज्ञानं वेदना संज्ञा संस्कारो रूपमेव च।३७।। - वि. दि. ३. रूप पंचेन्द्रियाण्याः पंचाविज्ञप्तिरेव च।
तसिमानाश्रया रूपप्रसादाश्चक्षुरादयः ।। वेदनानुभवः संज्ञा निमित्तोद्ग्रहणात्मिका । संस्कारस्कंधश्चाभ्योन्ये संस्कारास्त इमे त्रयः।।१५।। विज्ञान प्रति विज्ञप्ति.... ||१६ ।। अ.को. (१)।