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तीसरा अधिकार-४३
दुःखनिवृत्तिका सच्चा उपाय उत्तरः जब इच्छा तो दूरि होय अर सर्व विषयनिका युगपत् ग्रहण रह्या करै तब यह दुःख मिटै। सो इच्छा तो मोह गए मिटै और सबका युगपत् ग्रहण केवलज्ञान भए होय । सो इनका उपाय सम्यग्दर्शनादिक है, सोई साँचा उपाय जानना। ऐसे तो मोहके निमित्त तै ज्ञानावरण दर्शनावरणका क्षयोपशम भी दुःखदायक है, ताका वर्णन किया।
इका को कई-ज्ञानावरण दर्शनायरण का उदयतें जानना न भया ताळू दुःख का कारण कहो, क्षयोपशमको काहेको कहो हो?
ताका समाधान-जो जानना न होना दुःखका कारण होय तो पुद्गलकै भी दुःख ठहरे। तातै दुःखका मूलकारण तो इच्छा है सो इच्छा क्षयोपशमहीनैं हो है, तातै क्षयोपशमको दुःख का कारण कह्या है, परमार्थत क्षयोपशम भी दुःखका कारण नाहीं । जो मोइनै विषयग्रहणकी इच्छा है सोई दुःखका कारण जानना । बहुरि मोहका उदय है सो दुःखरूप है ही। कैसे? सो कहिए है
दर्शनमोहसे दुःख और उसकी निवृत्ति के उपाय का झूठापना प्रथम तो दर्शनमोहके उदयतें मिथ्यादर्शन हो है ताकरि जैसे याकै श्रद्धान है तैसे तो पदार्थ है नाही, जैसे पदार्थ है तैसे यह मानै नाहीं, तात याकै आकुलता ही रहै। जैसे बाउलाको काहूने वस्त्र पहराया, वह बावला तिस वस्त्रको अपना अंग जानि आपकू अर शरीरको वस्त्र को एक मानै । वह वस्त्र पहरावनेवालेके आधीन है सो यह कबहू फारै, कबहू जोरै, कयहू खोसे, कबहू नवा पहराव इत्यादि चरित्र करे। वह बाउला तिसको अपने आधीन माने, वाकी पराधीन क्रिया होय तातै महा खेदखिन्न होय । तैसे इस जीवको कर्मोदयने शरीर सम्बन्ध कराया, यहु जीव तिस शरीरको अपना अंग जानि आपको अर शरीर को एक माने। वह शरीर कर्मके आधीन कबहू कृश होइ कबहू स्थूल होय, कबहू नष्ट होय, कबहू नवीन निपजे इत्यादि चरित्र होय । यह जीव सिसको अपने आधीन माने, वाकी पराधीन क्रिया होय तातै महाखेदखिन्न हो है। बहुरि जैसे जहां बाउला तिष्ट था तहाँ मनुष्य घोटक धनादिक कहीं आन उतरे, वह बाउला तिनको अपने जाने, वे तो उनहीके आधीन, कोऊ आवै, कोऊ जाये, कोऊ अनेक अवस्थारूप परिणमै । यह बाउला तिनको अपने आधीन माने, उनकी पराधीन क्रिया होइ तब खेदखिन्न होय। तैसे यह जीव जहाँ पर्याय धरे तहाँ स्वयमेव पुत्र घोटक धनादिक कहींत आन प्राप्त भए, यह जीव तिनको अपने जाने सो वे तो उनहीके आधीन, कोऊ
आवे, कोऊ जादै, कोऊ अनेक अवस्थारूप परिणमै। यह जीव तिनको अपने आधीन माने, उनकी पराधीन किया होइ तब खेदखिन्न होय।
इस कोऊ कई-काहूकाल विर्ष शरीरकी वा पुत्रादिककी इस जीव के आधीन भी तो क्रिया होती देखिए है तब तो सुखी हो है।
ताका समाधान-शरीरादिककी, भवितव्यकी अर जीवकी इच्छा की विधि मिले कोई एक प्रकार जैसे वह चाहे तैसे परिणमै ताते काहू कालविधै बाहीका विचार होते सुखकी सी आभासा होय परन्तु सर्व ही तो