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चौथा अधिकार -७१
प्रयोजनभूत जीवादिकतत्त्व, अप्रयोजनभूत अन्य तिनके यथार्थ जानने की शक्ति होय । तहाँ जाकै मिथ्यात्वका उदय होय सो जे अप्रयोजनभूत होय तिनहीको वेदै, जाने, प्रयोजनमूतको न जाने । जो प्रयोजनभूतको जानै तो सम्यग्दर्शन होय जाय सो मिथ्यात्वका उदय होत होइ सकै नाहीं । तातें इहाँ प्रयोजनभूत अप्रयोजनभूत पदार्थ जाननेविष ज्ञानावरण का निमित्त नाही, मिथ्यात्वका उदय अनुदय ही कारणभूत है। इहाँ ऐसा जानना-जहाँ एकेन्द्रियादिकके जीतादि तत्त्वनिका यथार्थ जानने की शक्ति ही न होय तहाँ तो ज्ञानावरणका उदय अर मिथ्यात्वका उदयतें भया मिथ्यादर्शन इन दोऊनिका निमित्त है। बहुरि जहाँ संज्ञी मनुष्यादिक सयोपशमादि लब्धि होते शक्ति होय अर न जानै तहाँ मिथ्यात्वके उदयहीका निमित्त जानना। याहीत मिथ्याज्ञानका मुख्य कारण ज्ञानावरण न कह्या, मोहका उदय भया 'माव सो ही कारण कया है।
मिथ्यादर्शन और ज्ञान का पौर्वापर्य । बहुरि इहाँ प्रश्न-जो ज्ञान भए श्रद्धान हो है तातें पहले मिथ्याज्ञान कहों, पीछे मिथ्यादर्शन कहो?
ताका समाधान-है तो ऐसे ही, जानै बिना श्रद्धान कैसे होय। परन्तु मिथ्या अर सम्पकू ऐसी संज्ञा ज्ञानकै मिथ्यादर्शन सम्यग्दर्शनके निमित्तते हो है। जैसे मिथ्यादृष्टि वा सम्यग्दृष्टि सुवर्णादि पदार्थनिको जानै तो समान है परन्तु सो ही जानना मिथ्यादृष्टिके मिथ्याज्ञान नाम पावै, सम्यग्दृष्टिकै सम्यग्ज्ञान नाम पादै। ऐसेही सर्वामध्याज्ञान सम्यग्ज्ञानको कारण मिथ्यादर्शन, सम्यग्दर्शन जानना। तातें जहाँ सामान्यपने ज्ञान श्रद्धानका निरूपण होय तहाँ तो ज्ञान कारणभूत है ताको पहिले कहना अर श्रद्धान कार्यभूत है ताको पीछे कहना। बहुरि जहाँ मिथ्या सम्यग्ज्ञान अद्धानका निरूपण होय तहाँ श्रद्धान कारणभूत है ताको पहले कहना, ज्ञान कार्यभूत है ताको पीछे कहना।
बहुरि प्रश्न-जो ज्ञान श्रद्धान तो युगपत् हो है, इन विषै कारण कार्यपनो कैसे कहो हो?
ताका समाधान- वह होय तो वह होय इस अपेक्षा कारण-कार्यपना हो है। जैसे दीपक अर प्रकाश युगपत् हो है तथापि दीपक होय तो प्रकाश होय, ता” दीपक कारण है, प्रकाश कार्य है। तैसे ही ज्ञान श्रद्धान के का मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञानकै वा सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान के कारण- कार्यपना जानना।
बहुरि प्रश्न-जो मिथ्यादर्शन के संणेगते ही मिथ्याज्ञान नाम पायै है तो एक मिथ्यादर्शन ही संसारका कारण कहना था, मिथ्याान जुदा काहेको कह्या?
ताका समाधान-ज्ञानहीकी अपेक्षा तो मिथ्यादृष्टि वा सम्यग्दृष्टि के क्षयोपशमतें भया यथार्थ ज्ञान तामें किछु विशेष नाही अर यहु ज्ञान केवलज्ञानविष भी जाय मिले है, जैसे नदी समुद्र में मिले। तातै झानविषै किछु दोष नाहीं परन्तु क्षयोपशम ज्ञान जहाँ लागै तहाँ एक ज्ञेयविषे लागै सो यह मिथ्यादर्शनके निमित्तत अन्य ज्ञेयनिविष सो ज्ञान लागै अर प्रयोजनभूतजीवादि तत्त्वनिका यथार्थ निर्णय करनेविष न लागै सो यहु ज्ञानविषै दोष भया। याको मिथ्याज्ञान कह्या। बहुरि जीयादि तत्त्वनिका यथार्थ श्रद्धान न होय सो यहु श्रद्धान विषै दोष भया। याको मिथ्यादर्शन कह्या। ऐसे लक्षणभेदत मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान जुदा कह्या।