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चौथा अधिकार-७६
होय, इस लोकवियु निंद्य होय, परलोकविषै बुरा होय सो प्रत्यक्ष आप जाने तथापि तिनही विषे प्रवत्तै । इत्यादि अनेक प्रकार प्रत्यक्ष भासै ताकों भी अन्यथा श्रद्धहै जाने आचरै, सो यह मोहका माहात्म्य है ऐसे यहु मिथ्यादर्शन ज्ञानचारित्ररूप अनादित जीव परिणमे है। इस ही परिणमनकरि संसारविषे अनेक प्रकार दुःख उपजावनहारे कर्मनिका सम्बन्ध पाइये है। एई भाव दुःखनिके बीज हैं, अन्य कोई नाहीं। ताते हे भव्य जो दुखते मुक्त भया चाहै तो इन मिथ्यादर्शनादिक विभावभावनिका अभाव करना, यह ही कार्य है, इस कार्य के किए तेरा परमकल्याण होगा।
इति श्रीमोक्षमार्गप्रकाशक नाम शास्त्रविषै मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्रका निरूपणरूप चौथा अधिकार सम्पूर्ण भया । १४ ।।
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