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मोक्षमार्ग प्रकाशक-८८
याको कहिए है-तू कहेगा यह मेरी माता भी है अर बांझ भी है तो तेरा कह्या कैसे मानेंगे जो कार्य करे ताको अकर्ता कैसे मानिए। अर तू कहे निर्धार होता नाहीं सो निर्धार बिना मानि लेना ठहत्या तो आकाश के फूल, गधे के सींग भी मानो, सो ऐसा असम्भव कहना युक्त नाहीं। ऐसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश का होना कहै है सो मिथ्या जानना। ब्रह्मा-विष्णु-महेश का सृष्टिका कर्ता, रक्षक और संहारकपने का निराकरण
बहुरि वे कहै हैं-ब्रह्मा तो सृष्टिको उपजावै है, विष्णु रक्षा करै है, महेश संहार कर है सो ऐसा कहना भी न सम्भवै है। जात इन कार्यनिको करते कोऊ किछू किया चाहै कोऊ किछू किया चाहै तब परस्पर विरोध होय । अर जो तू कहेगा, ए तो एक परमेश्वरका ही स्वरूप है, विरोध काहेको होय । तो आप ही उपजावै, आप ही क्षपावै ऐसे कार्य में कौन फल है। जो सृष्टि अपको अनिष्ट है तो काहेको उपजाई अर इष्ट है तो काहे को क्षपाई। अर जो पहिले इष्ट लागी तब उपजाई, पीछे अनिष्ट लागी तब क्षपाई ऐसे है तो परमेश्वर का स्वभाव अन्यथा भया कि सृष्टि का स्वरूप अन्यथा भया । जा प्रथम पक्ष ग्रहेगा तो परमेश्वर का एक स्वभाव न ठहस्था। सो एक स्वभाव न रहने का कारण कौन है? सो बताय, बिना कारण स्वभाव की पलटनि काहेको होय । अर द्वितीय पक्ष ग्रहेगा तो सृष्टि तो परमेश्वर के आधीन थी, वाकों ऐसी काहेको होने दीनी जो आप को अनिष्ट लागे।
बहुरि हम पूछे हैं-ब्रह्मा सृष्टि उपजावै है सो कैसे उपजावै है। एक तो प्रकार यह है-जैसे मन्दिर चुननेवाला चूना पत्थर आदि सामग्री एकटी करि आकारादि बनावै है तैसे ही ब्रह्मा सामग्री एकटी करि सृष्टि रचना करै है तो ए सामग्री जहाँ से ल्याय एकटी करी सो ठिकाना बताय। अर एक ब्रह्मा ही एती रचना बनाई सो पहले पीछे बनाई होगी के अपने शरीर के हस्तादि बहुत किए होंगे सो कैसे है सो बताय। जो बतावेगा तिसही में विचार किए विरुद्ध मासेगा।
बहुरि एक प्रकार यहु है- जैसे राजा आज्ञा करै ताके अनुसार कार्य होय, तैसे ब्रह्मा की आज्ञाकार सृष्टि निपजै है तो आज्ञा कौनको दई। अर जिनको आज्ञा दई वे कहांत सामग्री ल्याय कैसे रचना करे हैं सो बताय।
बहुरि एक प्रकार यहु है- जैसे ऋद्धिधारी इच्छा करै लाके अनुसारि कार्य स्वयमेव बनै। तैसे ब्रह्मा इच्छा करै ताके अनुसारि सृष्टि निपजै है तो ब्रह्मा तो इच्छाही का कर्ता भया, लोक तो स्वयमेव ही निपज्या। बहुरि इच्छा तो परमब्रह्म कीन्ही ही थी, ब्रह्माका कर्तव्य कहा भया जातें ब्रह्मा को सृष्टि का निपजायनहारा कह्या। बहुरि तू कहेगा परमब्रह्म भी इच्छा करी अर ब्रह्मा भी इच्छा करी तब लोक निपज्या तो जानिए है केवल परमब्रह्मकी इच्छा कार्यकारी नाहीं। तहाँ शक्तिहीनपना आया।
बहुरि हम पूछे हैं- जो लोक बनाया हुवा बने है तो वनावनहारा तो सुखके अर्थ बनावै सो इन्ट ही रचना करै। इस लोकविषै तो इष्ट पदार्थ थोरे देखिए हैं, अनिष्ट घने देखिए हैं। जीवनिविषे देवादिक धनाए सो तो रमनेके अर्थि वा भक्ति करावनेके अर्थि इष्ट बनाए अर लट कीड़ी कूकरे सूर सिंहादिक बनाए