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तीसरा अधिकार-४१
विषयसेवन की पीड़ा अधिक भासै है। इन इन्द्रियनिकी पीडाकरि सर्व जीव पीडितरूप निर्विचार होय जैसे कोऊ दुःखी पर्वतते गिर पड़े तैसे विषयनिविषे झंपापात ले हैं। नाना कष्टकार धनको उपजावै ताको विषयनिके अफैि खोवै। बहुरि विषयनिके अर्थि जहाँ मरन होता जानै तहां भी जाय, नरकादिकको कारन जे हिंसादिक कार्य तियों की वा क्रोधादि कालिको उस्ता, सो पार कर, इन्द्रियनिकी पीड़ा सही न जाय ताते अन्य विचार किछू आवता नाहीं। इस पीड़ाहीकार पीड़ित भए इन्द्रादिक है ते भी विषयनिविष अति आसक्त होय रहे हैं। जैसे खाज रोगकरि पीडित हुवा पुरुष आसक्त होय खुजावै है, पीड़ा न होय तो काहेको खुजायै; तैसे इन्द्रिय रोगकरि पीड़ित भए इन्द्रादिक आसक्त होय विषय सेयन करै है, पीड़ा न होय तो काहेको विषय सेवन करै? ऐसे ज्ञानावरण दर्शनावरणका क्षयोपशमतें भया इन्द्रियादिजनित ज्ञान सो मिथ्यादर्शनादिकके निमित्तते इच्छासहित होय दुःखका कारण भया है।
ज्ञानदर्शनावरण के उदय से उत्पन्न दुःख और
__उसकी निवृत्ति के उपाय का मिथ्यापना अब इस दुःख दूर होनेका उपाय यह जीव कहा करै है सो कहिए है- इन्द्रियनिकार विषयनिका ग्रहण भए मेरी इच्छा पूरण होय ऐसा जानि प्रथम तो नाना प्रकार भोजनादिकनिकरि इन्द्रियनिको प्रबल करै है अर ऐसे ही जान है जो इन्द्रिय प्रबल रहे मेरे विषय-ग्रहणकी शक्ति विशेष हो है। बहुरि तहाँ अनेक बाझकारण चाहिए हैं तिनका निमित्त मिलावै है। बहुरि इन्द्रिय हैं ते विषयको सम्मुख भए ग्रहै तात अनेक बाम उपाय करि विषयनिका अर इन्द्रियनिका संयोग मिलावै है। नाना प्रकार वस्त्रादिकका वा भोजनादिकका वा पुष्पादिकका वा मन्दिर आभूषणादिकका वा गायन वादिनादिकका संयोग मिलावनेके अर्थि बहुत ही खेदखिन्न हो है। बहुरि इन इन्द्रियनिके सम्मुख विषय रहै तावत तिस विषयका किंचित् स्पष्ट जानपना रहै। पीछे सन द्वारे स्मरणमात्र रह जाय। काल व्यतीत होते स्मरण भी मन्द होता जाय तातै तिन विषयनिकों अपने आधीन राखनेका उपाय करै अर शीघ्र-शीघ्र तिनका ग्रहण किया करै। बहुरि इन्द्रियनिकै तो एक कालविषै एक विषयही का ग्रहण होय अर यह बहुत ग्रहण किया चाहै तातें आखता* होय शीघ्र-शीघ्र एक विषयको छोड़ि औरको ग्रहै। बहुरि वाको छोड़ि औरको ग्रहै, ऐसे हापटा मारै है। बहुरि जो उपाय याको भासै है सो कर है सो यह उपाय झूठा है। जात प्रथम तो इन सबनिका. ऐसे ही होना अपने आधीन नाही, महाकठिन है। बहुरि कदाचित् उदय अनुसार ऐसे ही विधि मिले तो इन्द्रियनिको प्रबल किए किछू विषय-ग्रहणकी शक्ति बध नाहीं। यह शक्ति तो ज्ञानदर्शन बधे* बथै + । सो यह कर्मका सयोपशमके आधीन है। किसीका शरीर पुष्ट है ताके ऐसी शक्ति घाटि देखिए है। काहूका शरीर दुर्बल है ताके अधिक देखिए है। तातै भोजनादिककरि इन्द्रियपुष्ट किए किछू सिद्धि है नाहीं। कषायादि घटनेते कर्मका क्षयोपशम भए ज्ञानदर्शन बधै तब विषयग्रहणकी शक्ति बथै है। बहुरि विषयनिका संयोग मिलावै सो बहुत काल ताई रहता नाही अथवा सर्व विषयनि का संयोग मिलता ही नाहीं। तात यह आकुलता रहिवो ही करै। बहुरि * उताक्ला, * बढ़ने पर, + बहै।