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सीसरा अधिकार-४५
. करै। वाका बुरा मए अपना किछु भी प्रयोजन सिद्ध न होय तो भी याका बुरा करै। बहुरि क्रोध होते कोई
पूज्य वा इष्ट भी बीचि आवै तो उनको भी बुरा कहै । मारने लगि जाय, किछू विचार रहता नाहीं। बहुरि अन्यका बुरा न होई तो अपने अंतरंग विष आप ही बहुत सन्तापवान होइ वा अपने ही अंगनिका 'घात करें या विषादकरि मरि जाय। ऐसी अवस्था क्रोध होते हो है। बहुरि जब याकै मानकषाय उपजै तब
औरनिको नीचा वा आपको ऊँचा दिखायनेकी इच्छा होइ । बहुरि ताके अर्थि अनेक उपाय विचारै, अन्यकी निदा कर, आदी प्रशंसा की ग. अनेक मरि जोगिन सहिमा मिटावै, आपकी महिमा करै। महाकष्टकर धनादिकका संग्रह किया ताको विवाहादि कार्यनिविष खरचै वा देना करि भी खर्च। मूए पीछे हमारा जस रहेगा ऐसा विचारि अपना मरन करिकै भी अपनी महिमा बघावै । जो अपना सन्मानादि न करै ताको भय आदिक दिखाय दुःख उपजाय अपना सम्मान करादै । बहुरि मान होते कोई पूज्य बड़े होहिं तिनका भी सम्मान न करे, किछू विचार रहता नाहीं। बहुरि अन्य नीचा, आप ऊँचा न दीसै तो अपने अंतरंग विष आप बहुत सन्तापवान होय वा अपने अंगनिका घात करै वा विषादकरि मरि जाय । ऐसी अवस्था मान होते होय है। बरि जब याकै मायाकषाय उपजै तब छलकर कार्य सिद्ध करनेकी इच्छा होय। बहुरि ताकै अर्थि अनेक उपाय विचारै, नाना प्रकार कपटके वचन कहै, कपटरूप शरीर की अवस्था करै, बाह्य वस्तुनिको अन्यथा दिखाये। बहुरि जिन विषै अपना मरन जाने ऐसे भी छल करै; बहुरि कपट प्रगट भए अपना बहुत बुरा होई, मरनादिक होई तिनको भी न गिनै । बहुरि माया हो कोई पूज्य वा इष्टका भी सम्बन्ध बने तो उनस्यों भी छल फरे, किछू विचार रहता नाहीं। बहुरि छलकरि कार्यसिद्ध न होइ तो आप बहुत संतापवान होप, अपने अगनिका पात करै वा विषादिकरि मरि जाय। ऐसी अवस्था माया होते हो है। बहुरि जब यार्क लोभ कवाय उपजै सब इष्ट पदार्थका लाभ की इच्छा होय, ताके अर्थि अनेक उपाय विचारै। याके साधनरूप वचन बोले, शरीरकी अनेक चेष्टा करै, बहुत कष्ट सहै, सेवा कर, विदेशगमन करे, जाकर मरन होता 'जाने सोभी कार्य करै। घना दुःख जिनविष उपजै ऐसा कार्य प्रारम्भ करे। बहरि लोभ होते पूज्य वा इष्टका
भी कार्य होय तहां भी अपना प्रयोजन साथै, किछू विचार रहता नाहीं । बहुरि जिस इष्ट वस्तुकी प्राप्ति भई है ताकी अनेक प्रकार रक्षा करै है; बहुरि इष्टवस्तुकी प्राप्ति न होय वा इष्टका वियोग होइ तो आप बहुत सन्तापवान होय अपने अंगनिका घात करै वा विषादकरि मरि जाय, ऐसी अवस्था लोभ होते हो है; ऐसे कवांयमिकरि पीड़ित हुवा इन अवस्थानिविष प्रवर्ते है।
बहुरि इन कषायनिकी साथ नोकषाय हो हैं। जहाँ जब हास्य कषाय होइ तब आप विकसित होइ प्रफुल्लित होइ सो यह ऐसा जानना जैसा वाययालेका हसना, नाना रोगकरि आप पीड़ित है, कोई कल्पनाकार हंसने लग जाय है। ऐसे ही यह जीव अनेक पीडासहित है, कोई झूठी कल्पनाकरि आपका सुहावसा कार्य मानि हर्ष माने है। परमार्थत दुःखी ही है। सुखी तो कषायरोग मिटे होगा। बहुरि जब रति उपजे है, तब इष्ट वस्तुविषै अति आसक्त हो है। जैसे बिल्ली मूसाको पकरि आसक्त हो है, कोऊ मारै, तो भी न छोरै। सो इहाँ इष्टपना है। बहुरि वियोग होनेका अभिप्राय लिये आसक्तता हो है सारौं दुःख ही