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मोक्षमार्ग प्रकाशक - ३२
ही देखिए है। जब सुनने विषै उपयोग लग्या होय तब नेत्रनिके समीप तिष्टता भी पदार्थ न दीसे ऐसे ही अन्य प्रवृत्ति देखिए है । बहुरि परिणमनविषे शीघ्रता बहुत है ताकरि काहू कालविषै ऐसा मानिए है युगपत् भी अनेक विषयनिका जानना या देखना हो है सो युगपत् होता नाहीं, क्रम ही करि हो है, संस्कारबलतें तिनका साधन रहे है । जैसे कागलेके नेत्र के दोय गोलक हैं, पुतरी एक है सो फिरै शीघ्र है ताकरि दोऊ गोलकनिका साधन कर है तैसे ही इस जीवके द्वार तो अनेक हैं अर उपयोग एक है। सो फिरे शीघ्र है ताकरि सर्व द्वारनिका साधन रहे है ।
इहां प्रश्न जो एक कालविषै एक विषय का जानना या देखना हो है तो इतना ही क्षयोपशम भया कहो, बहुत काकूं कहो ? बहुरि तुम कहो हो, क्षयोपशमतें शक्ति हो है तो शक्ति तो आत्माविषै केवलज्ञानदर्शन की भी पाइए है।
ताका समाधान - जैसे काहू पुरुषकै बहुत ग्रामनिविषै गमन करने की शक्ति है । बहुरि ताको काहूने रोक्या अर यहु कह्या पाँच ग्रामनिविषै जातो परन्तु एक दिनविषे एक ही ग्रामको जावो । तहाँ उस पुरुष के बहुत ग्राम जाने की शक्ति तो द्रव्य अपेक्षा पाइए है, अन्य काल विषै सामर्थ्य होय, वर्तमान सामर्थ्यरूप नाहीं है परन्तु वर्तमान पाँच ग्रामनितें अधिक ग्राम विषै गमन करि सकै नाहीं । बहुरि पाँच ग्रामनि विषे जाने की पर्याय अपेक्षा वर्तमान सामर्थ्यरूप शक्ति है जातै इनिविषे गमन करि सके है। बहुरि व्यक्तता एक दिनविषै एक ग्राम की गमन करने ही की पाइए है। तैसे इस जीव के सर्वको देखने जानने की शक्ति है। बहुरि याको कर्मने रोक्या अर इतना क्षयोपशम भया जो स्पर्शादिक विषयनि को जानो वा देखो परन्तु एक काल विषै एकहीको जानो वा देखो। तहाँ इस जीवके सबके देखने-जानने की शक्ति तो द्रव्यंअपेक्षा पाइए है अन्य - कालविषै सामर्थ्य होय परन्तु वर्तमान सामर्थ्यरूप नाहीं, जाते अपने योग्य विषयनित अधिक विषयनिकों देखि जानि सकै नाहीं । बहुरि अपने योग्य विषयनिकूं देखने जानने की पर्याय अपेक्षा वर्तमान सामर्थ्य रूप शक्ति है जातें इनको देखि जानि सके है; बहुरि व्यक्तता एक कालविषै एकहीको देखने वा जानने की पाइए है।
बहुरि इहाँ प्रश्न जो ऐसे तो जान्या परन्तु क्षयोपशम तो पाइए अर बाह्य इन्द्रियादिकका अन्यथा निमित्त भये देखना - जानना न होय वा धोरा होय वा अन्यथा होय सो ऐसे होते कर्महीका निमित्त तो न रह्या?
ज्ञान- दर्शन की पराधीनता में कर्म ही निमित्त है
ताका समाधान - जैसे रोकनहाराने यहु का जो पाँच ग्रामनिविधै एक ग्रामको एक दिनविषे जावो परन्तु इन किंकरनिको साथ ले जावो तहाँ वे किंकर अन्यथा परिणमैं तो जाना न होय वा थोरा जाना होय वा अन्यथा जाना होय । तैसे कर्मका ऐसा ही क्षयोपशम भया है जो इतने विषयनिविषै एक विषयको एक कालविषै देखो वा जानो परन्तु इतने बाह्य द्रव्यनिका निमित्त भये देखो जानो । तहाँ वे बाह्य द्रव्य अन्यथा परिणमै तो देखना जानना न होय या चोरा होय वा अन्यथा होय। ऐसे यहु कर्म के क्षयोपशमहीका विशेष