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मोक्षमार्ग प्रकाशक-३८
परमाणु ऐसे परिणमै हैं। बहुरि श्वासोच्छ्वास वा स्वर निपजै है सो ए भी पुद्गलके पिण्ड हैं अर शरीरस्यों एकबंधानरूप है। इन विषै भी आत्माके प्रदेश व्याप्त हैं। तहां श्वासोच्छ्वास तो पवन है सो जैसे आहारको ग्रह नीहारको निकासै तबही जीवनो होय तैसे बाह्यपवनको ग्रहै अर अभ्यन्तर पवनको निकासै तब ही जीयितव्य रहै। तातै श्वासोच्छ्वास जीवितव्यका कारण है। इस शरीरविषै जैसे हाड़-माँसादिक हैं तैसे ही पवन जानना। बहुरि जैसे हस्तादिकस्यों कार्य करिए तैसे ही पवनले कार्य करिए है। मुखमें ग्रास धस्या ताकों पवन” निगलिए है, मलादिक पवन” ही बाहर काढिए है, तैसे ही अन्य जानना। बहुरि नाड़ी या वायुरोग वा वायगोला इत्यादि ए पवनरूप शरीरके अंग जानने। वहरि स्वर है सो शब्द है। सो जैसे वीणाको तांतको हलाए भाषारूप होने योग्य पुद्गलस्कंध हैं, ते साक्षर वा अनक्षर शब्दरूप परिणमै है; तैसे तालया होट इत्यादि अंगनिको हलाए भाषापर्याप्तिविर्षे ग्रहै पुद्गलस्कन्ध हैं, ते साक्षर वा अनक्षर शब्दरूप परिणम हैं। बहुरि शुभ अशुभ गमनादिक हो है। इहाँ ऐसा जानना, जैसे दोयपुरुषनिकै इकदंडी बेड़ी है तहाँ एक पुरुष गमनादिक किया चाहै और दूसरा भी गमनादिक करै तो गमनादिक होय सके, दोऊनिविषै एक बैठि रहे तो गमनादि होय सकै नाही, अर दोऊनिविषे एक बलवान होय तो दूसरे को भी घसीट ले जाय तैसे आत्माकै अर शरीरादिकरूप पुद्गलकै एक-क्षेत्रावगाहरूप बंधान है। तहाँ आत्मा हलनचलनादि किया चाहै अर पुद्गल तिस शक्तिकार रहित हुआ हलन चलन न करै वा पुद्गलविषै शक्ति पाइए है अर आत्माको इच्छा न होय तो हलनचलनादि न होय सके। बहुरि इन विष पुद्गल बलयान होय हाले चाले तो साकी साथ बिना इच्छा भी आत्मा हालै चाले। ऐसे हलन-चलनादि क्रिया हो है।
बहुरि याका अपजस आदि बाह्य निमित्त बने है। ऐसे ए कार्य निपजै हैं, तिनकरि मोहके अनुसार आत्मा सुखी दुःखी भी हो है। नामकर्मके उदयते स्वयमेव ऐसे नानाप्रकार रचना हो है और कोई करनारा नाहीं है। बहुरि तीर्थकरादि प्रकृति इहाँ है ही नाहीं। बहुरि गोत्रकर्मकार ऊँचा नीषा कुलविष उपजना हो है तहाँ अपना अधिकहीरपना प्राप्त हो है। मोहके उदयकरि आत्मा सुखी दुःखी भी हो है। ऐसे अघातिकर्मनिका निमित्ततै अवस्था हो है।
या प्रकार इस अनादि संसारविषै घाति अघातिकर्मनिका उदयके अनुसार आत्माकै अवस्था हो है। सो हे भव्य! अपने अन्तरंगविषै विचारकरि देख, ऐसे ही है कि नाही? सो ऐसा विचार किये ऐसे ही प्रतिभासै है बहुरि जो ऐसे है तो तू यह मान कि 'मेरे अनादि संसार रोग पाइए है, ताके नाशका मोको उपाय करना' इस विचारतें तेरा कल्याण होगा।
इति श्रीमोक्षमार्गप्रकाशक नाम शास्त्रविषै संसारअवस्था का निरूपक द्वितीय अधिकार सम्पूर्ण भया ।।२।।
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