________________
मोक्षमार्ग प्रकाशक-१६
शास्त्राभ्यास विषै अति आसक्त है, धर्मबुद्धिकरि निंद्य कार्यनिके त्यागी भए हैं, ऐसे तिनि शास्त्रनिके श्रोता चाहिए। बहुरि श्रोतानिके विशेष लक्षण ऐसे हैं। जो याकै किछू व्याकरण न्यायादिकका वा बड़े जैनशास्त्रनिका ज्ञान होय तो श्रोतापनो विशेष शोमै है। बहुरि ऐसा भी श्रोता है अर वाकै आत्मज्ञान न भया होय तो उपदेश का मरम समझि सकै नाहीं तातें आत्मज्ञानकरि जो स्वरूपका आस्वादी भया है सो जिनधर्म के रहस्यका श्रोता है। बहुरि जो अतिशयवंत बुद्धिकरि वा अवधिमनःपर्ययकार संयुक्त होय तो वह महान् श्रोता जानना। ऐसे श्रोतानिके विशेष गुण हैं। ऐसे जिनशास्त्रनिके श्रोता चाहिए। बहुरि शास्त्र सुननेतें हमारा भला होगा, ऐसी बुद्धिकरि जो शास्त्र सुनै हैं परन्तु ज्ञान की मन्दताकरि विशेष समझे नाही, तिनिके पुण्यबन्ध हो है, विशेष कार्यसिद्धि होती नाहीं । बहुरि जे कुलप्रवृत्तिकरि वा पद्धति बुद्धि करि वा सहज योग बनने करि शास्त्र सुनै हैं या सुनै तो हैं परन्तु किछू अवधारण करते नाही, तिनकै परिणाम अनुसार कदाचित् पुण्यबन्ध हो है कदाचित् पापबंध हो है। बहुरि जे मद-मत्सर भावकरि शास्त्र सुनै है वा तर्क करने ही का जिनका अभिप्राय है, बहुरि जे महंतता के अर्थि वा किसी लोभादिकके प्रयोजनके अर्थ शास्त्र सुने है, बहुरि जो शास्त्र तो सुनै है परन्तु सुहावता नाही, ऐसे श्रोतानिके केवल पापबन्ध ही हो है। ऐसा श्रोतानिका स्वरूप जानना । ऐसे ही यथासम्भव सीखना सिखावन मादि जिनके पादए निकासी स्वरूप जानना। या प्रकार शास्त्र का अर वक्ता श्रोताका स्वरूप कह्या सो उचित शास्त्र को उचित वक्ता होय बांचना, उचित श्रोता होय सुनना योग्य है। अब यहु मोक्षमार्गप्रकाशक नाम शास्त्र रचिए है ताका सार्थकपना दिखाइए है
'मोक्षमार्गप्रकाशक' नाम की सार्थकता इस संसार अटवी विषै समस्त जीव हैं ते कर्मनिमित्त निपजे जे नाना प्रकार दुःख तिनकारे पीड़ित होइ रहे हैं। बहुरि तहाँ मिथ्या अन्थकार व्याप्त होय रहा है। ताकरि तहाँते मुक्त होने का मार्ग पावते नाही, तड़फि-तड़फि तहाँ ही दुःख को सहे हैं। बहुरि ऐसे जीवनिका भला होनेको कारण तीर्थंकर केवली भगवान सो ही सूर्य भया, ताका उदय भया, ताकै दिव्यध्वनिरूपी किरणनिकरि तहांत मुक्त होने का मार्ग प्रकाशित किया। जैसे सूर्य के ऐसी इच्छा नाहीं जो मैं मार्ग प्रकाशू परन्तु सहज ही वाकी किरण फैले है ताकरि मार्गका प्रकाश हो है तैसे ही केवली वीतराग हैं तात ताकै ऐसी इच्छा नाहीं जो हम मोक्षमार्ग प्रगट करें परन्तु सहज ही अघातिकर्मनिका उदयकरि तिनका शरीररूप पुद्गल दिव्यध्वनिरूप परिणमै है ताकरि मोक्षमार्गका प्रकाशन हो है। बहुरि गणथरदेवनिके यह विचार आया कि जहाँ केवली सूर्यका अस्तपना होइ तहाँ जीय मोक्षमार्गकी कैसे पावै अर मोक्षमार्ग पाए बिना जीव दुःख सहेंगे, ऐसी करुणाबुद्धि करि अंगप्रकीर्णकादिरूप ग्रन्थ तैई भए महान् दीपक तिनका उद्योत किया। बहुरि जैसे दीपक करि दीपक जोबनेरौं दीपकनिकी परम्परा वर्ते तैसे आचार्यादिकनि करि तिनि ग्रन्थनित अन्य ग्रन्थ बनाए। बहुरि तिनहूः किनहू अन्य ग्रन्थ बनाए। ऐसे ग्रन्थनित ग्रन्थ होतेः ग्रन्थनिकी परम्परा व है। मैं भी पूर्वग्रन्थनितें इस ग्रन्थ को बनाऊँ हूँ। बहुरि जैसे सूर्य वा सर्व दीपक है ते मार्ग को एकरूप ही प्रकाशै है तैसे दिव्यध्वनि वा सर्व ग्रन्थ हैं ते मोक्षमार्ग को एकरूप ही प्रकाश हैं। सो यह भी ग्रन्थ मोक्षमार्ग को प्रकाशै है। बहुरि जैसे प्रकाशै भी नेत्ररहित वा नेत्रविकार सहित पुरुष है तिनकुं मार्ग सूझता नाहीं तो दीपककै तो मार्ग प्रकाशकपनेका अभाव