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( xxxii ) :
श्लोक
सं०
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क्र० विषय श्लोक | क्र० विषय श्लोक सं०
__ सं० | सं० २३ आगति द्वार के विषय में ८४ | १४ लेश्या आदि द्वार (१६ से २६) ८७ २४ अनन्तराप्ति द्वार के विषय में ६३ | १५ गुण स्थान और योग द्वार २५ अठ्ठाइस लब्धियों के नाम ६६ - (३० से ३१)
६४ २६ समय सिद्धि आदि
१६ प्रमाण के विषय में . ६५ . (१६ से २३ द्वार)
१७ लघु-अल्प-बहुत्व के विषय २७ वेद आदि (२४ से ३१ द्वार) १०६ २८ प्रमाण के विषय में
१८ दिगाश्रयी अल्प-बहुत्व के २६ अल्प-बहुत्व आदि के
विषय में _ विषय में (३३-३४ द्वार) ११८ | १६ अन्तर के विषय में .. १५३ ३० अन्तर के विषय में १२२ ।
नौवा.सर्ग __ आठवां सर्ग . १ पंचेन्द्रिय जीवों का चौथा प्रकार १ पंचेन्द्रिय जीवों के तीसरे
(नारकी) सात तरह के नारकी १ प्रकार भेद के विषय में (देव) १ | २ . स्थान के विषय में २ दशजाति के भवन पति देव २ ३ पर्याप्ति आदि द्वार (३-४-५-६) ४ ३ पन्द्रह परमाधामी के स्वरूप ३ | ४ भव स्थिति आदि द्वार (७-११) ६ ४ देवों के दूसरे प्रकार व्यन्तर ५ समुदघात आदि द्वार (१२-१५) ११ तथा अनेक उपभेद
समय सिद्ध आदिद्वार (१६-२८)१५ ५ देवों के तीसरे प्रकार 'ज्योतिष्क' · | ७ आहार आदि द्वार (२६-३२) २०
तथा ५ प्रकार . ५६ ८ लघु-अल्प-बहुत्व तथा दिगाश्रयी ६ देवों का चौथा प्रकार वैमानिक
बहुत्व द्वार (३३-३४) ३० चार तरह के कल्पोपन्न ६२ है अन्तर द्वार के विषय में ३७ ७ कल्पातीत वैमानिक ६२
दसवां सर्ग ८ नौ ग्रेवेयक तथा पाँच अनुतर १ भवसंवेघ प्रकरण, संसारी जीवों विमानवासी
के भवसंवेध ६ लोकान्तक देव
२ महा-अल्प-बहुत्व प्रकरण संसारी १० स्थान के विषय में
जीवों के महाअल्प बहुत्व नाम ११ पर्याप्ति आदि द्वार (३ से १०) ७२ (द्वार३६) . १२ देहमान आदि द्वार (११ से १४)७६ जीवास्ति काय के पाँच प्रकार १२५ १३ अनन्तराप्ति और समयसिद्ध ४ कर्म बन्धन के मूल और उतर द्वार (१५ से १६)
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