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प्राप्त करा सकते हैं । उनकी निर्दोष चर्या एवं अविकारी चेहरा ही कितने ही मनुष्यों के धर्म-प्राप्ति का कारण बन जाता है ।
शोभन मुनि की गोचरी-चर्या से ही धनपाल को धर्म की प्राप्ति हुई थी । गोचरी (भिक्षा ) ग्रहण करते मुनि की निर्विकारता से ही इलाचीकुमार केवली बने थे ।
✿ पू. देवेन्द्रसूरिजी का स्वाध्याय प्रेम अनन्य था । काचली लेकर जब वे मात्रु करने जाते, तब भी उनका स्वाध्याय चालु रहता था । अन्तिम समय तक प्रतिदिन तीन-चार हजार गाथाओं का स्वाध्याय करते । सो सो गाथाओं के स्तवन उन्हें कण्ठस्थ थे ।
✿ प्रतिक्रमण आदि विहित क्रिया हैं । उनमें मन को स्थिर करने के उपाय हैं । उनमें रुचि बना कर देखें । अत्यन्त ही आनन्द आयेगा । एक लोगस्स बोलने में कितना आनन्द आता हैं ? मेरे प्रभु कैसे हैं ? जो अखिल लोक में उजाला फैलानेवाले हैं । धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले हैं ।
गणधरों ने जिन सूत्रों की रचना की वे कितने पवित्र एवं रहस्यपूर्ण होंगे ? यदि इतना ही विचार करो तो भी काम बन जाये । आप प्रतिक्रमण में बेगार निकालते हैं । आपकी क्रिया को देखकर लोगों के मन में भी विचार आ जाय : क्या रखा हैं प्रतिक्रमण में ? अभराई पर रख दो ।
हमारी आनन्दमय क्रियाओं का अवलोकन करके अन्य व्यक्तियों को स्वयंभू प्रेरणा मिलनी चाहिये ।
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अध्यात्मयोगी जिनशासन प्रभावक आचार्यवर्य श्री कलापूर्णसूरीश्वरजी म.ना आकस्मिक कालधर्मना समाचार जाण्या । देववंदनादि करेल छे । तमो सौ धैर्य राखशो, भावि प्रबल छे । सद्गतनो आत्मा परम शांतिने पामे ए ज कामना ।
एज ... जिनोत्तमसूरिनी वंदना १७- २ - २००२, राणी स्टेशन.
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****** कहे कलापूर्णसूरि - १