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स्थंडिल विधि :
स्थंडिल की शंका समय पर हो तो उसे आगम की भाषा में 'काल संज्ञा' कहते हैं । असमय पर लगे वह 'अकालसंज्ञा' कहलाती है। ___पूज्य प्रेमसूरिजी एकासणा करके डेढ बजे दोपहर में ही बाहर जाते । मैं भी एक बार उनके साथ गया था ।
कृमि के रोगी को छाया में बैठना चाहिये । छायादार स्थान नहीं मिले, कभी धूप में बैठना पड़े तो कुछ समय तक छाया करके खड़े रहें । (स्थंडिल रोकें नहीं, रोकने से आयुष्य का क्षय होता है । उस समय भले मालूम न पड़े परन्तु कुछ आयुष्य तो घटेगा ही ।)
भक्ति कोई व्यक्ति इतना चिपक कर बैठ जाये कि शीघ्र हटे ही नहीं । हमें यह लगे कि जाये तो अच्छा ।
परन्तु भगवान इस प्रकार नाराज नहीं होंगे, यदि आप उन्हें पकड़कर बैठ जाओगे तो भी ।
'निशदिन सूतां जागतां, हैड़ाथी न रहे दूर रे । जब उपकार संभारिये, तव उपजे आनन्द पूर रे.' परन्तु आप प्रभु को नहीं, धन को पकड़ कर बैठे हैं ।
जहां पैसे प्रतिष्ठित हो चुके हों, वहां प्रभु किस प्रकार प्रतिष्ठित हो सकते हैं ?
जैसलमेर, नागेश्वर आदि के संघों में जो होंगे, उन्हें ध्यान होगा । नित्य एकासणे करने पड़ते हैं । एक-दो बजे एकासणा करने का । कभी-कभी तो तीन भी बज जाते हैं । उस समय भी मैं प्रभु को भूला नहीं । चाहे दो अथवा तीन बजे हों, तब भी मैं शान्ति से भक्ति करता ।
ऐसी भक्ति से चेतना का ऊवीकरण होता है । नयेनये भाव जगते है, जिससे आगे-आगे का मार्ग स्वयं स्पष्ट होता जाता है । भगवान स्वयं मार्ग बताते हैं । प्रभु को अच्छी तरह पकड़ लें । समस्त साधना आपके हाथ में है। आप अपनी कहे कलापूर्णसूरि - १ **
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