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'परत्थ-करणं च । सुह गुरु जोगो' कितने ही परमार्थ का कार्य करनेवाले हमारे सम्पर्क में आये है और उन्होंने आनन्द व्यक्त किया है।
दुःखी को देखकर आपका हृदय कांप न उठे तो कौनसा ध्यान कहा जायेगा ? दुर्ध्यान कि शुभ ध्यान ?
जो ध्यान आपको दुःखी व्यक्ति के प्रति संवेदनशील न बनाये वह ध्यान भाड़ में जाय । ऐसे ध्यान से सावधान रहना, जो आपको जगत से निरपेक्ष बना दे, आपके हृदय को निष्ठर बना दें।
. समुद्घात के समय केवलज्ञानी चौथे समय सर्वलोकव्यापी है । समुद्घात के द्वारा केवलज्ञानी सम्पूर्ण लोक को पावन करते है । उस समय मन्दिर + मूर्ति में भी व्याप्त होते है कि नहीं ? केवलज्ञान के रूप में भगवान मन्दिर या मूर्ति में भी अवतरित हुए कहे जाते है ।
उस समय वे स्वयं पवित्र कार्मण वर्गणा को छोड़ते हैं । वे पवित्र पुद्गल अखिल ब्रह्मांड में फैल जाते हैं। उन पवित्र पुद्गलों को ज्ञानी ही जान सकते हैं ।
__ भगवती में अभी जानने को मिला कि आत्मा तो अगुरुलघु है ही, परन्तु भाषा, मन, कार्मण वर्गणा के पुद्गल भी अगुरुलघु हैं । अतः वे सर्वत्र अप्रतिहत है। वे समग्र ब्रह्मांडमें फैल सकते हैं । चतुःस्पर्शी पुद्गल अगुरुलघु होते हैं और आठस्पर्शी पुद्गल गुरुलघु होते हैं ।
• प्रथम माता आप को प्रिय एवं सत्यवाणी देती है । प्रिय एवं सत्यवाणी से जगत् आपका मित्र बनेगा, सामने से सभी दौड़ते हुए आयेंगे ।
कई बार पत्रकार मुझे पूछते है - 'क्या आप कोई वशीकरण करते हैं ? लोग क्यों दौड़ते आते हैं ?'
मैं कहता हूं - 'कोई वशीकरण नहीं है । वशीकरण हो तो भी वह मंत्र या कामण रहित है।
एक सुभाषितकार ने कहा है - न हीदृशं संवननं त्रिषु लोकेषु विद्यते । दया मैत्री च भूतेषु, दानं च मधुरा च वाक् ॥
कहे कलापूर्णसूरि - १
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