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बैं' करनेवाले बकरे के जैसे हैं । इसीलिए भगवान हमें स्व-स्वरूप याद करने का कहते हैं ।
* नय, निक्षेप, प्रमाण की शैली का ज्ञान मात्र यहीं देखने को मिलेगा, अन्य किन्हीं शास्त्रों में देखने को नहीं मिलेगा ।
. देवचन्द्रजी ने ज्ञानसार पर ज्ञानमंजरी टीका लिखी है जो नयपूर्वक लिखी है । भले शास्त्र में नय की बात करने का निषेध किया है, परन्तु योग्य श्रोतागण हो तो कर सकते हैं ।
- नय से आत्मा का स्वरूप कैसा ? आदि समस्त बातें यहां बताई जायेंगी ।
'कहे कलापूर्णसूरि' पुस्तक मळ्यु. खूब ज खंत-चीवटथी आपे संकलन कर्यु छे, ते साधुवादने पात्र छे. अनेक खपी जीवोने आ ग्रंथ महा-उपकारक बनशे ते निःशंक छे. आवा अनेकविध ग्रंथो आपना थकी शासनने मळता रहे एवी शुभेच्छा..
- अरविंदसागर
अमदावाद.
४७४ ****************************** कह
कलापूर्णसूरि - १