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'यः पश्यति स पश्यति ।' वही वास्तव में देखता है ।
समस्त जीवों में सिद्धत्व का ऐश्वर्य है । अब जगत् के समस्त जीव सिद्धों के साधर्मिक बन्धु बने, उनका वध-बंध कैसे हो सकता है ? इसमें तो सिद्धों का ही अपमान गिना जायेगा ।
म.सु. ४ ना हृदयने व्यथित करी दे, दिलने हचमचावी दे एवा दुःखद समाचार मळ्या । श्री जैनशासननी एक अत्यंत विरल कक्षानी अने विशिष्ट कक्षानी साधक व्यक्तिनी विदाय कोने व्यथित न करे ? आप सहुने तो शिरच्छत्र गुमाव्यानो अत्यंत आघात हशे ज । पण पू. आ. भग. श्री तो एवं व्यक्तित्व हतुं के आखा श्री जैन संघने शिरच्छत्र गुमाव्या जेवुं लागे छे । पं. श्री अजितशेखरविजयजीनी पंन्यास पदवी वखते सुरतमां पूज्यश्रीनी साधे रहेवानुं थयेलुं अने ए वखते तेओश्रीनी प्रभुभक्ति अने सतत अध्यात्मरमणता माणवा मळेली । जेना द्वारा तेओश्रीना आंतरवैभवनी कंईक पण झांखी थयेली... तेओ श्री विविध शासन प्रभावक प्रसंगो दरम्यान हजारोनी वच्चे रहेवा छतां अंदरथी तो मात्र पोताना आत्मा साथै ज रहेता हता ए वातनी ए वखते अनुभूति थयेली । स्वाध्याय तेओश्रीनो प्राण हतो । एक क्षण पण अवकाश मळे एटले स्वाध्यायनुं पुस्तक तेओ श्रीना हाथमां दृष्टिगोचर बने ज । तेओश्री अध्यात्मना आनंदने सतत माणी रह्या हता अने एटले ज तेओ श्रीना मुख पर पण सदा प्रसन्नता वरताती हती । तेओश्रीनो विशुद्ध कक्षानो पुण्यप्रकर्ष पण विरल कक्षानो हतो अने तेथी शासनप्रभावनाना कार्योंनी हारमाळाओ सतत सर्जाती रहेती हती । तेओश्रीना दर्शन माटे सतत भीड रहेती, लोको कलाको सुधी प्रतीक्षा करता...
चतुर्विध श्रीसंघने ते ओश्री प्रत्ये अनहद, आदर- बहुमान भाव हतो । तो तेओश्रीना दिलमां पण श्रीसंघनुं अनेरुं स्थान हतुं । जे तेओश्रीना नम्रतासूचक 'श्रीसंघे मने दर्शन आप्या' वचनथी अनेकवार व्यक्त थतुं हतुं ।
आवो विरल साधक आत्मा श्री जैन संघने फरी क्यारे मळशे ? ए तो भविष्य ज कहे .... आप सर्वे पण श्री जिनवचनोने परिणत करनारा छो... एटले एना बळे वधुमां वधु स्वस्थता समाधि जाळवनारा बनी रहो एवी परमकृपाळु परमात्माने प्रार्थना करूं छं ।
समाचार मळ्या पछी अमे देववंदन कर्या हता तथा श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन संघ, गोरेगाममां म.सु. ५ना रविवारे गुणानुवादनी सभानुं आयोजन कर्तुं हतुं तथा तेओश्रीना साधनामय जीवननी अनुमोदनार्थे में म.सु. ६नो अट्टम कर्यो छे ।
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एज... अभयशेखरसूरिनी अनुवंदना म. सु. ७, गोरेगाम, मुंबई.
कहे कलापूर्णसूरि - १