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पूज्यश्री का निर्मल हास्य, वि.सं. २०५७
१७-११-१९९९, बुधवार
का. सु. ६
- गुरु का परिवार गच्छ है । वहां रहनेवालों की विपुल कर्म-निर्जरा होती है, क्योंकि वहां विनय का विकास होता है, वहां सारणा-वारणा आदि मिलती है, जिससे दोष नष्ट होते हैं । उनका विनय देखकर नूतन शिष्य भी विनय सीखते हैं। जिससे उनकी परम्परा चलती है । यह बड़ा भारी लाभ है ।
दूसरों की आराधना में निमित्त बनना अतिप्रशस्त लाभ है । १. सारणा - स्मारणा = याद कराना । पडिलेहण आदि कोई भी बात याद करानी । २. वारणा - निषेध करना । अशुभ प्रवृत्ति से दूसरों को रोकना । ३. चोयणा - प्रेरणा करना । दूसरों को उंचे गुणस्थानक पर चढने की प्रेरणा देना । जिन-जिन गुणों की योग्यता प्रतीत हो, उनमें प्रेरणा देना ।
४. पड़िचोयणा - प्रतिप्रेरणा - अयोग्य व्यवहार करना बंध न करे तो ताड़ना आदि का भी प्रयोग करना ।
ये चारों बातें गच्छ में ही हो सकती हैं । गच्छ का यह भारी लाभ है । (कहे कलापूर्णसूरि - १ ****
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