Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

View full book text
Previous | Next

Page 649
________________ छे नाम प्रभुनुं शक्तिशाली, काम प्रभुनुं जे करे, जे स्मरण-कीर्तन-भक्ति करतां मन भीतर जिनवर धरे; अरिहंत प्रभुना ध्यानमां अरिहंतमय जे चेतना, कलापूर्णसूरि-गुरु-चरणमां, हो भावभीनी वंदना प्रभु-मूर्तिमां प्रभुने निहाळे, एवी निर्मल आंख छे, क्षणवारमा प्रभु-द्वार पहोंचे, एवी मननी पांख छे; जे नाम-मूर्ति-द्रव्य-भावे नित करे प्रभु-अर्चना, कलापूर्णसूरि-गुरु-चरणमां, हो भावभीनी वंदना माधुर्य छे मैत्रीतणुं मुदिता तणी सुप्रसन्नता, कोमलपणुं करुणातणुं माध्यस्थ्यनी मनोहारिता; आ चार भावोथी सुभावित जेमनो शुभ आतमा, कलापूर्णसूरि-गुरु-चरणमां, हो भावभीनी वंदना नथी मान-माया-लोभ ने समताभर्यो जे आतमा, नथी काम-कटुता-क्रोध-गृद्धि, शान्त निर्मल आतमा; नथी द्वेष-मत्सर-क्लेश के नथी नामनानी कामना, कलापूर्णसूरि-गुरु-चरणमां, हो भावभीनी वंदना जे कच्छ-वागड-देशना शृंगार अद्भुत गुरुवरा, श्री पद्म-जीत-हीर-कनकसूरि-देवेन्द्रसूरिवर हितकरा; जे शिष्य कंचन गुरु तणा करी विश्व-व्यापी नामना, कलापूर्णसूरि-गुरु-चरणमां, हो भावभीनी वंदना - रचयिता : पू.पं. श्री कल्पतरुविजयजी __गुरु-स्तुति कल्याणांकुरपोषणे जलधरो लावण्यलीलायुतः पूर्णः सद्गुणशिभिः गुरुवरो नम्रः प्रभोः पत्कजे । सूर्यो भव्यपयोजबोधकरणे रिक्तः सदा दोषतो, देयात्सन्मतिमाशु मे गुरुरसौ वन्द्यौ विभाते जनैः ॥ १ ॥ शार्दूल. ॥ ८ ॥ कच्छादिदेशस्थितमानवेभ्यो लाभं ददानं जिनधार्मिकं हि । पूर्णं गुणै र्वै विमलैः प्रगे प्र - णमामि कामं मुनिचन्द्रमेनम् ॥ २ ॥ उपजाति कहे कलापर्णसरि... सरि-१****************************** ५९७)

Loading...

Page Navigation
1 ... 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656