Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

View full book text
Previous | Next

Page 648
________________ पर कृपा - वृष्टि करते रहे और हमें संयम के मार्ग पर सत्त्व, जिम्मेदारी की समझ और शक्ति मन को निर्मलता व निश्चलता प्रदान करते रहें, इसी आंतर भावना के साथ रुकता हूं। - पं. कल्पतरुविजय • मां महाराज को पालखी में बिठाने का चढावा : __ १,३०,०००/- (धीरुभाई कुबडीआ) अग्नि-संस्कार का चढावा : १४,६०,०००/- (हितेशभाई गढेचा) • दूसरे १४/१५ चढावे हुए। कुल आय १८,८०,०००/- रू. जीवदया का फंड : __ ५ लाख से उपर हुआ । कुल मिलाकर २४ लाख रूपये हुए । मां महाराज की समाधि उत्तम थी। पू. मां महाराज के पवित्र देह का भरूच पिंजरापोल के परिसर में चंदन की चिता में अग्निदाह हुआ। गुरु-स्तुति अष्टक प्यारा हता अरिहंत ने प्यारा जीवो संसारना, प्यारं हतुं प्रभु-नाम ने प्यारा पदो नवकारना; प्यारी हती प्रभु-भक्ति ने प्यारी हती निज-साधना, कलापूर्णसूरि-गुरु-चरणमां, हो भावभीनी वंदना निज-देहमां रहेवा छतांये, देहथी न्यारी दशा, कार्यों करे पर-हित तणा पण चित्तमां चिन्मय दशा; वळी सर्वमां होवा छतां, जल-कमलवत् आसंग ना, कलापूर्णसूरि-गुरु-चरणमां, हो भावभीनी वंदना जे छे प्रतापी सूर्य जेवा सौम्य वळी शशधर समा, गंभीर जे सागर समा ने धीर वळी महीधर समा; जेनी प्रभा सुवर्ण जेवी, वाणी शीतल चंदना, कलापूर्णसूरि-गुरु-चरणमां, हो भावभीनी वंदना ५९६ ****************************** कहे

Loading...

Page Navigation
1 ... 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656