Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 656
________________ SEDilil યજી ગણિવરને આચાર્ય-પર્ક છની કલગીતની શ્રી કલાપ્રભવિજયજી ગણિવ श्रीseuda - વિજયજી તથા પૂર્ણાનશ્રી મુનિયે ગત્સવ:સમારોહ माननि :महास.9,शुभवा વા{/1 41માટERI Wીટમદ ઇરી કીલી 5Eudedिoseionनपन्यास-पE तथानुनिश्रीभनियन् विनेगशिषe Hero महास.9,शुपार.११-2-2000 PFR/ મદ ધિરાણુ કલાપૂર્ણ સરીશ્વરજી ,ii. Normsfoda 1301045 'कहे कलापूर्णसूरि' पुस्तक पूज्यश्री कलापूर्णसूरिजी के हाथ में ललित-विस्तरा अद्भुत भक्ति -ठान्थ है / अगर आप संस्कृत जानते है तो मूल ग्रन्थ पढो / अगर संस्कृत नहीं जानते है तो उस पर वाचना के गुजराती पुस्तक (कहे कलापूर्णसूरि, भाग 3-4) भी प्रकाशित हुए हैं / उन पुस्तकों को जरुर बार-बार पढें / मार्यश्री विजयकलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा., समक्ष दी गई अंतिम वाचना में से वि.सं. 2048, माघ व. 6, दिनांक 3-2-2002, रविवार रमणीया, जी. जालोर (राज.) Tejas Printers AHMEDABAD PH. (079) 6601045

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