Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 646
________________ मातृवंदना आस्तां तावदियं प्रसूति-समये दुर्वार-शूलव्यथानैरुच्ये तनु-शोषणं मलमयी शय्या च सांवत्सरी । एकस्यापि न गर्भभार-भरण-क्लेशस्य यस्याः क्षमो यातुं निष्कृतिमुन्नतोऽपि तनयः तस्यै जनन्यै नमः ॥ - आ. शंकर (शार्दूलविक्रीडितम् ) મા, તે દુ:સહ વેદના પ્રસવની જે ભોગવી ના ગણું, કાયા દીધી નીચોવી ના કહું ભલે તે ધોઈ બાળોતિયાં; આ જે એક જ ભાર માસ નવ તે વેક્યો હું તેનું ઋણ, પામ્યો ઉન્નતિ તોય ના ભરી શકું તે મા ! તને હું નમું. - ગુજરાતી અનુવાદ : મકરંદ દવે मां ! तूने अति वेदना प्रसव की जो भोग ली, ना गिनूं, सूखाया अपना शरीर कपड़े धो धो उसे ना गिन; ढोया जो नव मास गर्भ उसका भी एक कर्जा बना, पाऊं उन्नति तो भी ना भर सकू, हे मां ! तुझे वंदना. - हिन्दी अनुवाद : मुक्ति / मुनि 'मां' : पुत्र की दृष्टि में __ पू. मां महाराज के कालधर्म के बाद पू.पं. कल्पतरुविजयजी का संवेदनात्मक एक पत्र... सादर अनुवंदना । - मां महाराज गये, भीतर के मनः-प्रदेश को भीगा-भीगा करता एक वात्सल्य-निर्झर सदा के लिए लुप्त हो गया । भले दूर हो, साथ में न हो तो भी मां का अस्तित्व मन को एक बलप्रद व आनंद-प्रद बनता अस्तित्व है । अंदाजन ३-३० से ४-३० तक शाम को हम तीनों भाई भरूच होस्पिटल में मां महाराज के पास ही थे । अंतिम सांस तक उन्हें ५९४ ****************************** कहे ****** कहे कलापूर्णसूरि - १)

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