Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 571
________________ सर्वमंत्र शिरोमणि, महामंत्र नवकार; समरतां सुख ऊपजे, जपतां जयजयकार ॥ १ ॥ ऊगे सूरज सुखनो, न रहे दीन ने हीन; जो समरो नवकारने, सुखमां जाये दिन ॥ २ ॥ अवला सौ सवला पडे, सवला सफला थाय; जपतां श्री नवकारने, दुःख समूला जाय ॥ ३ ॥ - नवकार की यात्रा शोभायात्रा नहीं, शोधन यात्रा है । संस्कार, सद्गुण, सदाचार, स्वास्थ्य, समृद्धि एवं समाधि की यात्रा है। नवकार से अपने आप योग्यता के द्वार खुलते है । नवकार का साधक यह निर्णय करे कि भविष्य में मेरे कदम तीर्थ के बहार नहीं पड़ेंगे - ऐसा मैं प्रण लेता हूं ।' नवकार के अलावा किसी भी मंत्र में उसका फल नहीं बताया । चूलिका में फल-कथन है : 'एसो पंच नमुक्कारो ।' यह नवकार समस्त पाप नष्ट करेगा । __ एक नमस्कार समस्त आराधना का अर्क है । __भावपूर्वक नमस्कार नहीं होगा तो अनुष्ठान द्रव्य बनेगा । चूलिका भाव नमस्कार है । जिस प्रकार डोकटर रोग दूर करता है उस प्रकार नवकार के अक्षर विभाव को दूर करते हैं, अष्ट कर्मों को नष्ट करते हैं । नवकार के दर्शन से दर्शनावरणीय, नवकार के स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय, नवकार में, स्वयं का ही स्वरूप, ओह ! मेरा ऐसा स्वरूप ? ऐसा भाव देखने से मोहनीय । नवकार को नमस्कार करने से अन्तराय कर्म नष्ट होते हैं । __ अघाती कर्न भी ध्यान से नष्ट होते हैं, देह को हम भूल जाते हैं, देव याद रहते हैं । 'अहं देहोऽस्मि' के स्थान पर 'अहं देवोऽस्मि' आये तब नामकर्म, सब जीव आत्मवत् प्रतीत हों तब गोत्रकर्म अक्षरों में अद्वैत आये तो आयुष्य । मंगलरूप अक्षर गिनने से वेदनीय कर्म जाता है... कहे १****************************** ५१९

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