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नैगम - संग्रह का उधारवाद व्यवहार में नहीं चलता । व्यवहार नय कहता है : अभी तुम कैसे हो ? वह देखो । तुम सिद्धस्वरूपी हो, ऐसी बातें यहां नहीं चलती । आप कर्मयुक्त हैं। यह वास्तविकता स्वीकार करें । यही आत्मसंप्रेक्षण योग कहलाता है ।
'कर्मसत्ता से मैं दबा हुआ हूं' इस प्रकार अपनी स्थिति देखना आत्म-संप्रेक्षण है।
कौनसे व्यक्ति या कौनसी वस्तु के प्रति हमारा राग, द्वेष या मोह ज्यादा है ? इस प्रकार का चिन्तन आत्म-संप्रेक्षण है, ताकि उसका निवारण करने के लिए हम कटिबद्ध हो सकें ।
___ ऋजुसूत्र वर्तमान में स्थिर करता है । भविष्य में महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मैं यह करूंगा, वह करूंगा आदि बचकानी बातें हैं । वर्तमान में जो प्राप्त हुआ है उसका उपयोग नहीं कर रहे तो भविष्य में कैसे करोगे ?
ऋजुसूत्र वर्तमानग्राही है ।
शब्दनय आत्म-सम्पत्ति प्रकट करने के अभिलाषी को सिद्ध मानता है । समभिरूढ केवलज्ञानी को और एवंभूत अष्ट-कर्म-मुक्त सिद्ध को सिद्ध मानता है ।
जब तक एवंभूत नय सिद्ध न कहे तब तक हमें साधना चालु रखनी है।
. गुप्ति अर्थात् अशुभ से निवृत्ति एवं शुभ में प्रवृत्ति ।
* 'मौन' का अर्थ केवल 'बोलना नहीं' ऐसा नहीं है । ऐसा तो वृक्ष आदि भी करते हैं । पुद्गलों में प्रवृत्ति नहीं करना वास्तविक मौन है ।
काया से पुद्गलों में प्रवृत्ति नहीं करना काया का मौन है । वचन से पुद्गलों में प्रवृत्ति नहीं करना वचन का मौन है । मन से पुद्गलों में प्रवृत्ति नहीं करना मन का मौन है ।
'आत्मगुण आवरणे न ग्रहे आतमधर्म, ग्राहक शक्ति प्रयोगे जोडे पुद्गल शर्म; परलोभे, परभोगने, योगे थाये पर-कर्तार, एह अनादि प्रवर्ते, वाधे पर विस्तार' ॥ १४ ॥ अपनी शक्तियां पुद्गल में लगाकर हमने पर का ही विस्तार
कहे
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