Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 602
________________ लेता है, कारागार में भी कमा लेता है। भाग्य खराब हो तो सुलक्षण युक्त साधनों से भी मनुष्य दरिद्र ही रहता हो, यह भी सम्भव है । परन्तु यहां सुगुरु की निश्रा आप जिनाज्ञापूर्वक स्वीकार करो तो खराब होने का कोई अवसर नहीं है । अतः शुभ गुरु की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिये । सर्व प्रथम यह देखना चाहिये कि गुरु एवं गुरुकुल कैसे हैं ? गुरु महान गुणों से युक्त होते है । जिस प्रकार बड़े उदार सेठ के पास नौकरी करते हो और सेठ को आपके प्रति प्रेम हो तो धीरे-धीरे आप उसके पास उधार माल लेकर धंधा (व्यवसाय) शुरू करो तो कितने मालामाल हो जाओगे ? उस प्रकार ज्ञानदाता उदार गुरु मिल जायें तो काम हो जाये । गुरु के गुण देखते-देखते शिष्य में भी संक्रान्त होंगे ही । पढने से नहीं आये वह देखने से आता है। पू.पं. भद्रंकरविजयजी महाराज के पास तीन वर्ष रहने से उनके गुण प्रत्यक्ष देखने का अवसर मिला, जिससे अत्यन्त ही लाभ हुआ । नवसारी स्थित आदिनाथ जिनालयवाले तीन चार वर्षों से प्रतिष्ठा के लिए विनती करते रहे । अन्त में पूज्य पं. भद्रंकरविजयजी ने उन्हें बेड़ा (राजस्थान) में समझा दिया । उसके बाद उन्होंने पूज्य सुबोधसागरसूरिजी से प्रतिष्ठा कराई । पू. पंन्यासजी महाराज के पास रहने से हमें बहुत ही फायदा हुआ। उत्तम सेठ को कोई नहीं छोड़े तो उत्तम गुरु को शिष्य कैसे छोड़े ? गुरुकुलवासी का पुन्य और गुणों का भण्डार भरता ही जाता है । गुरु का विनय करने से वह साधु दूसरों के लिए मार्गदर्शक बनते हैं । आपके दृष्टान्त से दूसरों को भी प्रेरणा मिलेगी । गुरुकुल - वास मार्ग है, क्योंकि ज्ञान, दर्शन, चारित्र की प्राप्ति एवं पालन गुरुकुलवास से ही सम्भव है । आत्म-निवेदन अर्थात् स्वयं को गुरु के चरणों में समर्पित करना । आप गुरु का बहुमान करते हैं, तब सचमुच गौतमस्वामी से लगाकर समस्त गुरुओं का बहुमान करते हैं और तीर्थंकरों की आज्ञा *** कहे कलापूर्णसूरि - 2) ५५० ****************************** कहे

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