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भीलडीयाजी (गुजरात) तीर्थे सामूहिक जाप,
वि.सं. २०४४, फाल्गुन
Pickwise
१३-११-१९९९, शनिवार
ज्ञान - पंचमी
व्याख्यान
. मानव भव, पंचेन्द्रिय-परिपूर्णता आदि हमें बहुत मिला है, परन्तु उसके सदुपयोग की कला गुरु से प्राप्त नहीं की तो सब निरर्थक है ।
. जैन कुल में जन्म लिया अतः ओघ से भी नवकार गिनना, दर्शन-पूजा के लिए जाना, व्याख्यान में जाना आदि स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो ही जाते हैं ।
. प्रभावना मिलने के लोभ से भी पूजा आदि में जाना होता है। हम स्वयं भी प्रभावना के लोभ से पूजामें जाते थे । प्रभावना वितरण करने में गडबड होने के भय से प्रभावना बंध नहीं की जाती । पू. नेमिसूरि के फलोदी चातुर्मास (वि.सं. १९७२) के समय गड़बड़ के कारण प्रभावना बंध रखी गई, परन्तु उन्होंने पुनः शुरू कराई थी ।।
. आज ज्ञान पंचमी है । __ ज्ञान में प्रमाद करें तो ज्ञानकुशील कहलाते हैं । इस तरह अन्य स्थान पर भी दर्शन-कुशील आदि भी समझें ।
* कहे कलापूर्णसूरि - 8
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