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- काकटूर (नेल्लोर) तीर्थ प्रतिष्ठा, वि.सं. २०५२
१-११-१९९९, सोमवार
का. व. ६
• प्राप्त हुए जिन-शासन की विधिपूर्वक आराधना करने से कर्म-शुद्धि शीघ्र होती है और आत्मा शीघ्र मोक्षगामी बनती है ।
. 'समयं गोयम मा पमायए' इस प्रकार भगवान गौतम स्वामी को कहते थे । कोई यह भी समझ बैठे कि गौतम स्वामी अत्यन्त प्रमादी होंगे । अतः भगवान को उन्हें बार-बार यह कहना पड़ता होगा । नहीं, गौतमस्वामी के माध्यम से भगवान का अखिल विश्व को सन्देश है कि ऐक क्षण भी प्रमाद करने योग्य नहीं है ।
शरीर के प्रति इतना मोह है कि उसके लिए किया गया प्रमाद, प्रमाद लगता ही नहीं, जरूरी लगता है । प्रमाद अनेक रूप में हमे घेर लेता है। कभी निवृत्ति के रूप में तो कभी प्रवृत्ति के रूप में भी आ धमकता है । निवृत्ति (नींद आदि) को तो सभी प्रमाद मानते हैं, परन्तु जैन दर्शन तो प्रवृत्ति को भी प्रमाद मानता है । विषय-कषायों से युक्त कोई भी प्रवृत्ति प्रमाद है । संसार भले ही उसे उद्यमी कहता हो, अप्रमत्त कहता हो अथवा कर्मवीर कहता हो, परन्तु जैन-दर्शन की दृष्टि में विषयकषायों से की जानेवाली कोई भी प्रवृत्ति प्रमाद ही है ।
** कहे कलापूर्णसूरि - 8
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