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१२वीं गाथा से २०वीं गाथा में सूरिमंत्र निहित है । पूज्य पं. महाराज कहते थे कि दीपावली में इसका जाप किया जाता
'अल्पश्रुतं श्रुतवतां' गाथा में ज्ञान का मंत्र है । पंन्यासजी महाराज विद्यार्थियों को यह मंत्र गिनने का खास कहते थे ।
गाथा १३ :
भगवान के चार अतिशय उन्हें त्रिभुवन - नायक बनाते हैं । ये अपायापगमातिशय आदि चार भावनाओं से आये हैं ।
मैत्री से अपायापगमातिशय, प्रमोद से पूजातिशय, करुणा से वचनातिशय, माध्यस्थ से ज्ञानातिशय प्रकट हुए
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गाथा १४ : प्रभु के गुण चौदह राजलोक में फैले हुए हैं । गुणों को कोई प्रतिबन्ध कहां से हो ?
प्रभु ! यदि आपके गुण मुझ में आये हों तो मैं मानूंगा कि आप ही मेरे अन्तर में आये हैं । भगवान को घर में लाना अर्थात् उनके गुण लाना । भगवान शक्ति के रूप में तथा गुणों के रूप में सर्वत्र व्याप्त है ।
गाथा १५ : ब्रह्मचर्या का वर्णन -
तेजस्वी, यशस्वी, वचस्वी, वर्चस्वी प्रभु किसी से भी चलित नहीं होते ।
ब्रह्मचर्य एवं ब्रह्मचर्या में फरक है। ब्रह्म में चर्या वह ब्रह्मचर्या । पांच परमेष्ठी ब्रह्म के ही रूप हैं । ब्रह्म - प्राकट्य : अरिहंत । ब्रह्म - स्थिति : सिद्ध । ब्रह्म - चर्या : आचार्य । ब्रह्म - विद्या : उपाध्याय । ब्रह्म - सेवा : साधु ।
प्रभु का नाम लो और ब्रह्मचर्य की शक्ति आप में आये बिना नहीं रहेगी ।
५१२ ****************************** कहे