________________
से प्राप्त नहीं किये जा सको, ऐसे हो । असंख्य गुणों से आप 'असंख्य' हैं ।
तीर्थ की आदि करनेवाले होने के कारण आद्य हैं ।
परब्रह्म स्वरूप प्राप्ति से आप परब्रह्म है । ऐश्वर्य से ईश्वर है । शरीर नहीं होने से आप अनंगकेतु हैं और योगियों के नाथ योगीश्वर हैं ।
एक : चेतना लक्षण से और अनेक : संख्या से है । गाथा २६ : थाओ मारा नमन तमने दुःखने कापनारा, थाओ मारा नमन तमने भूमि शोभावनारा; थाओ मारा नमन तमने आप देवाधिदेवा, थाओ मारा नमन तमने पापने शोषनारा.
पूज्यश्री : प्रभु ! केवल आप मेरी आधि, व्याधि, उपाधि की पीड़ा हरो, यह मैं नहीं कहता; मैं तो कहता हूं कि आपके विरह की पीड़ा हरो । _आप भूमि (धरा)के शृंगार हैं ।
'मंचाः क्रोशन्ति ।' के अनुसार आप पृथ्वी के मनुष्यों की शोभारूप हैं । मनुष्य तब ही सुशोभित होता है जब वह प्रभु को अन्तर में बसाता है। अतः प्रभु ! आप मुझसे दूर न जायें । आप मेरे अनन्य अलंकार है, आभूषण हैं; क्योंकि आप ही त्रिलोकीनाथ हैं।
ऐसे प्रभु को अन्तर में बसाये तो भवोदधि सूख जाये । अर्थात् आपके हृदय में उछलता विषय-कषायों का सागर सूख जाये । भवोदधि कहीं बाहर नहीं है, भीतर ही हैं ।
गाथा २७, २८, २९, ३०, ३१; पूज्यश्री...
गुणों को कहीं स्थान नहीं मिलने के कारण वे प्रभु में जा बसे ।
दोष क्रोधित होकर भाग गये और भागते-भागते कह गये - 'आप न रखो तो कोई बात नहीं, हमें रखने वाले बहुत हैं ।
शशिकान्तभाई - प्रातिहार्यों का ध्यान क्या देता है ? अशोक वृक्षके ध्यान से सात लाभ : १. शोक हरता है ।
कह
१******************************५१५