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परन्तु आत्मा के विषय में कुछ भी जानने की इच्छा नहीं है । कैसे मिलेगी आत्मा और कैसे मिलेंगे परमात्मा ? सारी दुनिया को आप जानना चाहते है, सिर्फ अपनी आत्मा को छोड़कर ।।
. जैन दर्शन सात नयों से शुद्ध आत्मा की पहचान कराता
संग्रह : एक ही आत्मा है । सर्वत्र ब्रह्म है - ऐसा अद्वैतवाद यहां से निकला है ।
नैगम : आप में शुद्धता का एक अंश है, तो भी मैं आपको शुद्ध आत्मा मानूंगा । आप चिन्ता नहीं करें । .
व्यवहार : नहीं, आत्मा कर्म सहित एवं कर्मरहित, इस प्रकार अनेक भेदवाली है । मैं भेदों में मानता हूं ।
ऋजुसूत्र : आपका उपयोग सिद्ध में हो तो ही सिद्धस्वरूपी मानूंगा ।
शब्द : आत्म-सम्पत्ति प्रकट करने की भावना हो तभी मानूंगा । समभिरूढ : केवलज्ञान हुआ हो तो ही मानूंगा । एवंभूत : आठों कर्मों से मुक्त बनो तो ही मानूंगा ।
सभी नय अपनी दृष्टि से सच्चे हैं, पूर्णतः सच्चे नहीं हैं । हाथी को देखनेवाले सात अंधों के समान हैं । जब सातों एकत्रित हो जायें तब प्रमाण बने ।
नय सात है, परन्तु वैसे उसके सातसौ नय होते हैं ।
एवंभूत नय जब तक हमें शुद्ध आत्मा न कहें, तब तक हमें साधना से रुकना नहीं है। _ 'एम नय भंग संगे सनूरो, साधना सिद्धतारूप पूरो; साधक भाव त्यां लगे अधूरो,साध्य सिद्ध नहीं हेतुशूरो॥११॥' आप साधना करो तब ही पूर्ण बन सकते हो ।
संग्रह या नैगम नय ३३% (तैंतीस प्रतिशत) में पास कर देते है, परन्तु एवंभूत नय तो ९९ प्रतिशत में भी पास नहीं करता । शत प्रतिशत ही चाहिये, थोड़ा भी कम नहीं ।
साध्य संग्रह ने निश्चित कर दिया । तेरी सत्ता में परम तत्त्व पड़ा है, ऐसा संग्रह ने बताया है।
मिट्टी में घड़े (मटके) की योग्यता है । (कहे कलापूर्णसूरि - १ ****
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