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'नामथी जीव चेतन प्रबुद्ध, क्षेत्रथी असंख्य प्रदेशी विशुद्ध। द्रव्यथीस्व-गुण पर्याय पिण्ड,नित्य एकत्व सहज अखंड॥६॥ नाम से जीव, चेतन आदि कहलाता हैं, क्षेत्र से स्व-गुण-पर्याय का पिण्ड कहलाता है । भाव से नित्य, एक, सहज स्वभावी एवं अखण्ड कहलाता है । नय के सात भेद भी हो सकते हैं । सातसौ भेद भी हो सकते हैं । परन्तु मुख्य दो भेद हैं - १. द्रव्यार्थिक नय; द्रव्य (मूल पदार्थ) से सम्बन्धित सोचे वह ।
२. पर्यायाथिक नय; पदार्थों में होने वाले परिवर्तन - अवस्था सोचे वह ।
काला, ‘गोरा इत्यादि अवस्था पर्याय कहलाती हैं । द्रव्यार्थिक नय के चार भेद : नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र । पर्यायार्थिक नय के तीन भेद : शब्द, समभिरूढ और एवंभूत ।
प्रश्न - चार प्रकरण आदि का अध्ययन होता है, उस प्रकार नय का अध्ययन नहीं होता ।।
उत्तर - अध्ययन ग्रन्थ तैयार करो, मैं सहायता करूंगा ।
'तत्त्वज्ञान प्रवेशिका' इसी प्रकार से तैयार हुई थी। जामनगर के चातुर्मास में प्रारम्भ हुआ था। जामनगर में, जो पदार्थ सीखे, वे दूसरों को सिखाता हूं। एक महिना कहीं रुकुं तो भी श्रावकों को सिखाता हूं।
अंजार के चातुर्मास में ऐसा पाठ शुरू किया था । यु. पी. देढिया प्रतिदिन दूर से आते । उन्हें वह अत्यन्त पसन्द आया । उस समय (वि. संवत् २०२३) पैंतीस हजार रूपयों में दस हजार प्रतियां छपवाई थी।
प्रथम पुस्तक - तत्त्वज्ञान प्रवेशिका । द्वितीय पुस्तक - यह अध्यात्म गीता ।
नय का ज्ञान नहीं हो तो आगम के रहस्य ही नहीं समझ में आयेंगे।
अन्त में इन नयों के ज्ञान के द्वारा मुनि कैसे बनते हैं ? यह बतायेंगे।
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** कहे कलापूर्णसूरि -
कहे